जानिए क्या है महाशिवरात्रि का रहस्य
हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि के पर्व को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है. शास्त्रों में शिवरात्रि को भगवान शिव की पूजा और आराधना का मुख्य दिन माना गया है. महाशिवरात्रि का पर्व फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है. भोलेनाथ को विश्व की सर्वोच्च शक्तियों में से एक माना जाता है. हमारे वेद पुराणों और भाषा ग्रंथों में शिव की महिमा और गरिमा का विस्तृत वर्णन किया गया है. आज हम आपको इस आर्टिकल के द्वारा महाशिवरात्रि के रहस्य से अवगत कराने जा रहे हैं.
शिवरात्रि में रात्रि का रहस्य-
• अक्सर लोगों के मन में यह ख्याल आता है कि सभी देवी देवताओं की पूजा दिन में की जाती है, पर भोलेनाथ को रात्रि से इतना लगाव क्यों है और वह भी फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि की रात्रि ही क्यों?
• यह सभी जानते हैं कि भगवान शिव संघार शक्ति और तमोगुण के स्वामी है. इसीलिए रात्रि से उनका विशेष लगाव स्वाभाविक है. रात्रि को संघार काल माना जाता है. रात्रि के आते ही सबसे पहले प्रकाश पर अंधकार का साम्राज्य कायम हो जाता है.
• सभी जीव जंतुओं और प्राणियों की कर्म चेष्टाएँ खत्म हो जाती हैं और और निद्रा द्वारा चेतना का भी अंत होता है. पूरी दुनिया रात्रि के समय अचेतन होकर निद्रा में विलीन हो जाती है.
• ऐसी परिस्थिति में प्राकृतिक दृष्टि से शिव का रात्रि प्रिय होना सहज होता है. इसी वजह से भोलेनाथ की पूजा-अर्चना इस रात्रि में और हमेशा प्रदोष काल में की जाती है.
• शिवरात्रि का कृष्ण पक्ष में आने का भी एक विशेष अर्थ है. शुक्ल पक्ष में चंद्रमा अपना पूर्ण रूप ले लेता है और कृष्ण पक्ष में धीरे-धीरे चंद्रमा की रोशनी कम होती जाती है.
• जैसे जैसे चंद्रमा बढ़ता है, वैसे वैसे संसार के सभी रस्वान पदार्थों में वृद्धि और घटने पर सभी पदार्थ क्षीण हो जाते हैं. चंद्रमा के क्षीण होने का असर प्राणियों पर भी पड़ता है.
• जब चंद्रमा क्षीण होता है तो जीव जंतुओं के अंतः करण में तांत्रिक शक्तियां प्रबल होने लगती हैं. जिसके कारण उनके अंदर तरह-तरह की अनैतिक और आपराधिक गतिविधियां जन्म लेती हैं.
• भूत प्रेत भी इन्हीं शक्तियों में से एक है, और शिव को भूत प्रेत का स्वामी माना जाता है. दिन में जब प्रकाश रहता है तब जगत आत्मा अपनी शक्तियों का इस्तेमाल नहीं कर पाती हैं, पर रात्रि के अंधकार में यही शक्तियां बलवान हो जाती हैं.
• इन्हीं शक्तियों का नाश करने और इन्हें नियंत्रण में रखने के लिए शिव को रात्रि प्रिय माना गया है. जिस प्रकार पानी की गति को रोकने के लिए पुल बनाया जाता है, उसी प्रकार चंद्रमा के क्षीण होने की तिथि आने से पहले उन सभी तामसी शक्तियों का नाश करने के लिए शास्त्रों में शिवरात्रि की आराधना करने का विधान बनाया है.
• कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में आराधना करने का यही रहस्य है, पर आप यह सोच रहे होंगे कि कृष्ण चतुर्दशी को हर महीने आती है. तब उसे महा शिवरात्रि क्यों नहीं कहते हैं.
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की विशेषता-
• हमारे शास्त्रों में सभी शिवरात्रि को महत्वपूर्ण माना गया है, पर जैसा कि हमने पहले बताया है कि अमावस्या के दुष्प्रभाव से बचाव के लिए उसके 1 दिन पहले चतुर्दशी के दिन यह है पूजा की जाती है.
• उसी तरह से साल के अंतिम महीने से ठीक 1 महीना पहले महाशिवरात्रि की पूजा का नियम शास्त्रों में बताया गया है. भोलेनाथ संघार के अधिष्ठाता होने के बावजूद कल्याण कारक कहलाते हैं.
• इसकी वजह यह है कि विनाश में भी सृजन के बीज छुपे रहते हैं. जब तक किसी वस्तु का विनाश नहीं होता है तब तक दूसरी वस्तु का सृजन नहीं होता है. शिव संघार करने के साथ-साथ संसार का कल्याण भी करते हैं. इसलिए उन्हें शिव कहा जाता है.
शिव क्यों कहलाते हैं अस्तित्व के आद्यसृष्टा -
• भगवान हमारे पुराणों में शिव को अनुपम सामंजस्य स्थापित करने वाले भगवान के रूप में चित्रित किया गया है. जिस शक्ति के अंदर ऐसा अद्भुत समन्वय हो वही शक्ति विष अपने अंदर लेकर अमरत्व का लाभ प्राप्त कर सकता है.
• शिव को नारीश्वर माना जाता है, पर उनके जैसा काम विजेता अभी तक इस दुनिया में दूसरा कोई भी नहीं हुआ है.
• शिव गृहस्थ होते हुए भी बैरागी कहे जाते हैं. श्रीकंठ होते हुए भी श्री से दूर हैं. शिव रिद्धि सिद्धि यों के स्वामी होने के बाद भी उनसे परोमुख हैं.
• उग्र होते हुए भी सौम्य और अकिंचन होते हुए भी सर्वेश्वर माने जाते हैं. शिव के शरीर की शोभा भयंकर विषधर के साथ-साथ सौम्य सुधारक भी बढ़ाते हैं.
• शिव के मस्तक पर प्रलय का प्रतीक उनकी तीसरी आंख और माथे पर संसार को जीवन प्रदान करने वाली गंगा की धारा उनकी शोभा बढ़ाती है. शिव के आसपास नंदी, वृषभ और सिंह विचरण करते रहते हैं.
• शिव के पारिवारिक सदस्यों में मयूर, सांप, वृषभ सिंह भी शामिल हैं. शिव का यह रूप न्याय और प्रेम के शासन का आदर्श चित्र है.
• भगवान शिव ने अलग-अलग कठिनाइयों के बावजूद संसार के समक्ष सृष्टि के प्रारंभ में ही उदाहरण प्रस्तुत किया था .शिवरात्रि को इन्हीं देवादीदेव महादेव भोलेनाथ की आराधना का प्रमुख पर्व माना जाता है.
•अगर ऐसे अनुपम गुणसाली भगवान की पूजा करते हुए और उनके पवित्र चरित्र का कीर्तन और गायन करते हुए यदि हम उनके गुण ग्रहण करें तो पूरे संसार का कल्याण हो सकता है.
शिवरात्रि में उपवास और रात्रि जागरण का महत्व-
• सभी लोग शराब, भांग, अफीम आदि पदार्थों की मादकता से परिचित है, पर शायद सभी लोगों के लिए इस बात का विश्वास करना मुश्किल है कि अन्न में भी मादकता होती है. इस बात को सिद्ध करने के लिए हमें विशेष प्रमाणों की जरूरत नहीं है.
• भोजन ग्रहण करने के बाद शरीर में आलस्य और तंद्रा के रूप में भोजन के नशे को सभी लोग महसूस करते हैं. अन्न अनेक प्रकार की ऐसी पार्थिव शक्ति से भरपूर होता है जो पार्थिव शरीर से मिलकर 2 गुना बलशाली हो जाता है.
• इस शक्ति को हमारे शास्त्रों में आदिभौतिक शक्ति कहा गया है. शक्ति की प्रबलता उस आध्यात्मिक शक्ति से की जा सकती है जिसे हम उपासना और तपस्या द्वारा पाना चाहते हैं.
• इस तथ्य को अनुभव करके हमारे ऋषि-मुनियों ने संपूर्ण आध्यात्मिक शक्तियों में उपवास को प्रथम स्थान में महत्वपूर्ण बताया है. शास्त्रों के अनुसार उपवास विषय निवृत्ति का अचूक साधन माना गया है.
• क्योंकि जब पेट में अन्न जाता है तो लोगों को उसके बाद फिल्में देखना, गाना सुनना, ताश खेलना, घूमना फिरना अलग-अलग तरह के इंद्रिय व्यापार दिखाई देते हैं, परंतु भूखे पेट इन सभी विषयों पर ध्यान नहीं जाता है.
• इसीलिए अध्यात्मिक शक्ति को आश्रय देने के लिए जरूरी है कि आप उसके लिए जगह खाली करें और ऐसा सिर्फ उपवास से ही संभव हो सकता है.
• शिवरात्रि में रात्रि जागरण का सीधा अर्थ यह है कि जब संपूर्ण जगत अचेतन होकर निद्रा में लीन हो जाता है तब सयंमी लोग जिन्होंने उपवास द्वारा अपने इंद्रियों पर विजय प्राप्त की है जाग कर अपने सभी कार्यों को पूर्ण करते हैं.
• जब लोग रात के समय जाकर अपनी लक्ष्य सिद्धि के लिए प्रयास करते हैं तब शिव की उपासना करने के लिए सबसे उचित समय होता है.
• इसके अलावा रात्रि प्रिय शिव से मिलने के लिए यह अवसर श्रेष्ठ रहता है. वास्तविकता यह है कि शिवरात्रि के अवसर पर अगर आप सच्चे मन से शिव व्रत करते हैं तो यह उपवास और जागरण अपने आप ही पूर्ण हो जाता है.
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