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महाशिवरात्रि व्रत से जुडी कुछ विशेष बातें


महाशिवरात्रि व्रत से जुडी कुछ विशेष बातें 

हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि का त्यौहार बहुत ही श्रद्धा और धूमधाम के साथ मनाया जाता है. महाशिवरात्रि व्रत फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन किया जाता है. महाशिवरात्रि व्रत को हमेशा अर्धरात्रि व्यापिनी चतुर्दशी तिथि में ही करना चाहिए चाहे यह तिथि पूर्वा हो या परा हो. नारद संहिता में बताया गया है की जिस दिन फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि अर्धरात्रि योग वाली हो उस दिन जो व्यक्ति महाशिवरात्रि का व्रत करता है उसे अनंत फल प्राप्त होते हैं. इस संबंध में हमारे शास्त्रों में 3 पक्ष बताए गए हैं. चतुर्दशी को प्रदोष व्यापिनी, अर्धरात्रि व्यापिनी और उभयव्यापिनी व्रत…. निर्णय सिंधु और धर्मसिंधु ग्रंथों में बताया गया है की निशीथ व्यापिनी चतुर्दशी तिथि को ही ग्रहण करना चाहिए. इसलिए चतुर्दशी तिथि को निशितव्यापिनी होना सबसे मुख्य है ,पर इसके अभाव होने पर प्रदोष व्यापिनी तिथि में ग्राह्य  होने से यह पक्ष छोटा हो जाता है. इसी वजह से पूर्वा या परा दोनों में जो भी निश्चित अपनी चतुर्दशी तिथि पड़ रही हो उसी में महाशिवरात्रि का व्रत करना चाहिए


चतुर्दशी के स्वामी शिव


1- ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है की प्रतिपदा आदि 16 तिथियों के अग्नि आदि देवता स्वामी माने जाते हैं. इसलिए जिस तिथि का जो देवता स्वामी होता है उस देवता का उसी तिथि पर व्रत पूजन करना चाहिए. ऐसा करने से उस देवता की विशेष कृपा मिलती है


2- चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव माने जाते हैं. या शिव की तिथि चतुर्दशी है. इसलिए व्रत को महाशिवरात्रि कहा जाता है. इसीलिए हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी में शिवरात्रि का व्रत किया जाता है


3- जो मॉस शिवरात्रि व्रत कहलाता है. शिवभक्त हर कृष्ण चतुर्दशी को व्रत रखते हैं, पर फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को अर्ध रात्रि में ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव हुआ था. इसी वजह से इस व्रत को महाशिवरात्रि कहा जाता है


4- महाशिवरात्रि का व्रत ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, स्त्री, पुरुष, बाल, युवा, वृद्ध सभी लोग कर सकते हैं. जिस तरह श्री राम, श्री कृष्ण वामन और नरसिंह जयंती और सभी एकादशी का व्रत सभी लोगों को करना चाहिए, उसी तरह महाशिवरात्रि का व्रत भी सभी लोगों को करना चाहिए. जो मनुष्य महाशिवरात्रि का व्रत नहीं करता है उसे दोष लगता है


महाशिवरात्रि व्रत का महत्व


1- शिवपुराण की कोटि रूद्र संहिता के अनुसार शिवरात्रि व्रत करने से मनुष्य को भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है. ब्रह्मा विष्णु और पार्वती जी, कृष्ण भगवान के पूछने पर भगवान् शिव ने कहा कि शिवरात्रि व्रत करने से महा पुण्य की प्राप्ति होती है


2- जो मोक्ष प्राप्त करना चाहते हैं उन्हें ये व्रत में नियमों के का पालन अनुसार जरूर करना चाहिए. भगवान शिव की पूजा, रुद्र मंत्रों का जापमंदिर में उपवास शिव पुराण में मोक्ष के ये सनातन मार्ग बताए गए हैं


3- इन मार्ग में भी शिवरात्रि व्रत का बहुत ही खास महत्व है. इसीलिए सभी लोगों को शिवरात्रि का व्रत जरूर करना चाहिए. यह सब लोगों के लिए धर्म का उत्तम साधन है


4- निष्काम या काम भाव से सभी मनुष्यों वर्णो स्त्रियों बालकों और सभी देवताओं के लिए शिवरात्रि व्रत परम हित कारक माना गया है


5- हर महीने की शिवरात्रि व्रत में भी फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी में होने वाली महाशिवरात्रि व्रत का वर्णन शिवपुराण में किया गया है


रात्रि ही क्यों


1- अन्य देवी देवताओं का पूजन व्रत आदि दिन में ही किया जाता है. इसलिए सभी लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि भगवान शिव को रात्रि ही इतनी प्रिय क्यों है और वह भी फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि…. 


2- शिव पुराण में इस जिज्ञासा का समाधान करते हुए बताया गया है कि भगवान शिव संघार शक्ति और तमोगुण के अधिष्ठाता हैं. इसलिए तमोमयी रात्रि से उनका लगाव होना कोई अस्वाभाविक बात नहीं है


3- रात्रि संघार  का प्रतिनिधि होती है. उसका आगमन होते ही सबसे पहले प्रकाश का अंत होता है, उसके पश्चात जीवो की दैनिक क्रियाओं का संघार और अंत में निद्रा द्वारा चेतना का संघार होकर


4- पूरा विश्व संघाणी रात्रि की गोद में अचेतन होकर सो जाता जाता है. ऐसी अवस्था में प्राकृतिक दृष्टि से शुभ रात्रि प्रिय होना कोई असहज बात नहीं है


5- इसी वजह से भगवान शिव की आराधना केवल इस रात्रि में ही बल्कि हमेशा प्रदोष के समय की जाती है. शिवरात्रि का कृष्ण पक्ष में होना भी साभिप्राय है


6- शुक्ल पक्ष में चंद्रमा पूरी तरह से सबल होता है और कृष्ण पक्ष में चंद्रमा क्षीण हो जाता है. उसके बढ़ने के साथ-साथ संसार के सभी रस्वान पदार्थों में वृद्धि और क्षय के साथ उनमें क्षीणता होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है


7- चंद्रमा घटते घटते अमावस्या के दिन पूरी तरह से क्षिण हो जाता है. पूरे चराचर जगत के स्वामी उस चंद के क्षीण हो जाने से उसका प्रभाव अंड पिंड वाद के अनुसार संपूर्ण सृष्टि  के प्राणियों पर भी पड़ता है


8- जीवो के अंतः करण में तामसी शक्तियां प्रबल होकर अलग-अलग प्रकार के नैतिक और सामाजिक अपराधों की वजह बनती है


9- इन्हीं शक्तियों को आध्यात्मिक भाषा में भूत प्रेत कहा जाता है. शिव को भूत-प्रेतों का नियंत्रक माना जाता है. दिन में  सूर्य की रोशनी में आत्म तत्व की जागरूकता की वजह से यह शक्तियां अपना खास असर नहीं दिखा पाती हैं


10- रात में चंद्रमा विहीन अंधकारमय रात्रि के आने पर यह शक्तियां अपना असर दिखाने लगती हैं. इसीलिए जैसे पानी आने से पहले पुल बनाया जाता है उसी तरह चंद्र क्षय अमावस्या तिथि आने से पहले उन संपूर्ण तामसी शक्तियों के शमन के लिए एकमात्र अधिष्ठाता भगवान आशुतोष की आराधना करने का नियम शास्त्रों में बनाया गया है


फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी का रहस्य


1- हर महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की को शिवरात्रि मनाई जाती है .पंचांग में उन्हें शिवरात्रि के नाम से ही लिखा जाता है, पर फाल्गुन में मनाई जाने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि क्यों कहा जाता है


2- जिस तरह अमावस्या के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए उसे ठीक 1 दिन पहले चतुर्दशी को यह पूजा की जाती है. उसी तरह क्षय होते हुए 1 वर्ष के अंतिम माह चैत्र से ठीक 1 महीना पहले फाल्गुन में ही शास्त्रों में इसका विधान बताया गया है


3- साथ ही रुद्रो के एकादश संख्यात्मक होने की वजह से इस त्यौहार का 11 महीने में संपन्न होना इस व्रत उत्सव के रहस्य पर रोशनी डालता है


शिवरात्रि में रात्रि जागरण क्यों


1- ऋषि-मुनियों ने सभी आध्यात्मिक अनुष्ठानों में व्रत को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है. शास्त्रों के अनुसार उपवास विषय निवृत्ति का अचूक साधन है. इसलिए अध्यात्मिक साधना के लिए उपवास करना बहुत जरूरी है


2- उपवास करने के साथ रात्रि जागरण के महत्व पर गीता में बताया गया है कि उपवास करने से मन और इंद्रियों पर नियंत्रण करने वाला व्यक्ति संयमी होता है और ऐसा व्यक्ति रात को जागकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयास कर सकता है. इसीलिए भगवान शिव की उपासना करने के लिए रात्रि जागरण के अलावा और कौन सा समय उपयुक्त हो सकता है


महाशिवरात्रि पूजा विधि


1- शिव पुराण में बताया गया है कि व्रत करने वाले व्यक्ति को सुबह उठकर स्नान करने के पश्चात मस्तक पर भस्म का त्रिपुंड तिलक और गले में रुद्राक्ष माला पहनकर शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग का विधिपूर्वक पूजन और नमस्कार करना चाहिए


2- इसके बाद श्रद्धा पूर्वक व्रत का संकल्प लेना चाहिए. व्रत का संकल्प लेने के बाद हाथ में पुष्प और अक्षत लेकर यह कहना चाहिए कि "हे महादेव आपको नमस्कार है. मैं शिवरात्रि का व्रत करना चाहता हूँ. हे प्रभु आपकी कृपा से मेरा ये व्रत निर्विघ्न पूर्ण हो


3- यदि आप व्रत करने में सक्षम नहीं है तो चारों पहर की पूजा ना करके पहले प्रहर की पूजा करें और अगले दिन सुबह दोबारा स्नान करके भगवान शिव की पूजा करने के बाद व्रत का पारण करें .


4- स्कंद पुराण में बताया गया है की इस तरह भगवान शिव की पूजा जागरण और व्रत करने से मनुष्य का पुनर्जन्म नहीं होता है और उसे मुक्ति मिलती है. इस महान त्योहार के बारे में एक कथा प्रचलित है


कथा


एक बार शिवरात्रि के दिन पूजा करती हुई किसी स्त्री का आभूषण चुरा लेने के अपराध में मारा गया कोई मनुष्य इसलिए शिव जी की कृपा से सद्गति को प्राप्त हुआ क्योंकि उसने चोरी करने की कोशिश में चारो प्रहार कुछ नहीं खाया और लगातार जगता रहाइसी वजह से बिना सोचे समझे व्रत हो जाने पर शिवजी ने उसे सद्गति प्रदान की


इस व्रत की महिमा का पूर्ण रूप से वर्णन कर पाना असंभव है. इसीलिए आत्म कल्याण की इच्छा रखने वाले सभी मनुष्यों को शिवरात्रि का वे जरूर करना चाहिए


महाशिवरात्रि पर्व का संदेश


1- भगवान शिव में अनुपम सामंजस्य अद्भुत समन्वय और उत्कृष्ट सद्भाव के दर्शन होते हैं. इसलिए हमें उनसे शिक्षा लेकर विश्व कल्याण के जैसे महान कार्य में हिस्सा लेना चाहिए


2- यही इस समय परम पावन त्यौहार का मानव जाति के लिए जगह संदेश है. शिव अर्धनारीश्वर होने के बावजूद काम विजेता माने जाते हैं. यह गृहस्थ होते हुए भी परम विरक्त है


3- विष का पान करने की वजह से नीलकंठ होकर भी विश से पूरी तरह अलग है. रिद्धि सिद्धि ओं के स्वामी होने के बावजूद उनसे अलग है .


4- उग्र होते हुए भी सौम्य , अकिंचन होते हुए भी सर्वेश्वर है. भयंकर विषधर सांप घूमते हैं.


5- सर्प और चंद्रमा दोनों को ही शिव आभूषण के रूप में धारण करते हैं. शिव के मस्तक पर प्रलय कालीन अग्नि और सिर पर परम शीतल गंगा धारा विराजमान है


6- शिव के यहां वृषभ और सिंह मयूर आपस में भेद भूलकर साथ-साथ क्रीड़ा करते हैं .इससे विश्व को सह अस्तित्व अपनाने की शिक्षा प्राप्त होती है


7- इसी तरह शिव का श्री विग्रह शिवलिंग ब्रह्मांड और निराकार ब्रह्म का प्रतीक होने की वजह से सभी के लिए पूजनीय है


8- जिस तरह निराकार ब्रह्म रूप रंग आकार आदि से रहित होता है, उसी तरह शिव भी ब्रह्म रूप रंग आकार से रहित है


9- जिस तरह गणित में शून्य कुछ ना होते हुए भी सब कुछ होता है. उसी तरह किसी भी अंग के दाहिने होकर जिस तरह उस अंग का 10 गुना मूल्य कर देता है


10- उसी तरह शिवलिंग की पूजा से भी शिव भी दाहिने होकर मनुष्य को अनंत सुख समृद्धि का वरदान देते हैं. इसलिए मनुष्य को उपयुक्त शिक्षा ग्रहण करके शिव के इस महान वक्त महाशिवरात्रि को बड़े समारोह के रूप में मनाना चाहिए.