भारत वर्ष मे पितृ पक्ष को श्राद्ध के रूप में भी जाना जाता है और दोनों का आश्य भी एक ही है। इन दिनों में पूर्वजों व पितरों (यानि जो परिवार के सदस्य मृत्यु को प्राप्त हो चुके है जैसे माता पिता, दादा दादी, चाचा, चाची, भाई, बहन आदि ) को विशेष सम्मान और श्रद्धांजलि दी जाती है। पितृ पक्ष लगभग दो सप्ताह की अवधि तक चलता है और यह अवधि भारतीय चंद्र माह में पड़ती है, जोकि ग्रेगोरियन कैलेंडर महीनों से मेल खाती है।
पितृ पक्ष या श्राद्ध की तिथि –
पितृ पक्ष में हिंदू अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिये विशेष पूजा-अर्चना करते है । ऐसा करने से घर में सुख-स्मृद्धि व सम्मान आता है। यह विशेष समयावधि गणेश चतुर्थी के बाद पडने वाली पहली पूर्णिमा से शुरू होती है और पहली अमावस्या पर समाप्त हो जाती है।
पितृ पक्ष से जुडी पौराणिक कथा -
पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि जब महाभारत युद्ध के दौरान योद्धा और दानवीर राजा कर्ण की मृत्यु हो गई और उनकी आत्मा स्वर्ग में आई। तब उन्हें वहाँ भोजन के बजाय गहने और सोने का भोजन दिया गया। तब उन्होंने स्वर्ग के स्वामी इंद्र से पूछा कि उन्हें असली भोजन क्यों नहीं मिल रहा है। भगवान इंद्र ने तब उन्हें बताया कि तुमने इन वस्तुओं को अपने पूरे जीवन दान के रूप में दिया था लेकिन अपने पूर्वजों को कभी भी भोजन दान नहीं किया।
यह सुनकर कर्ण ने उत्तर दिया कि वह अपने पूर्वजों से अवगत नहीं थे। इस तर्क को सुनकर, इंद्र पंद्रह दिन की अवधि के लिए कर्ण को पृथ्वी पर वापस जाने के लिए सहमत हुए ताकि वह अपने पूर्वजों की स्मृति में भोजन बना सके और दान कर सके। समय की इस अवधि को पितृ पक्ष के रूप में जाना जाता है। और तभी से पितृपक्ष की महत्ता को माना जाता है।
किस प्रकार है पितृ पक्ष अनुष्ठान विधि -
इस दौरान श्राद्ध का अनुष्ठान किया जाता है। हर व्यक्ति अपने-अपने तरह से अनुष्ठान करता है। परन्तु जो सामान्य रूप से सभी लोग कर सकते है और उन्हें करना चाहिए, उसका विवरण यहाँ इस प्रकार दिया जा रहा है। श्राद्ध के अनुष्ठान को तीन भागों में विभाजित किया जाता है –
पितृ दोष को कम करने के लिये दान करें –
पितृपक्ष मनाने से हमारे पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और साथ ही उनका आशीर्वाद भी। यह आशीर्वाद हमें आने वाली बाधाओं से दूर रखता है। अगर आप पितृ दोष से पीड़ित है तो आपको पितृपक्ष में दान जरूर करना चाहिए । ऐसा करने से पितृ दोष काफी हद कम हो जाता है और अपने पूर्वजों के प्रिय हो जाते हैं। ऐसा करने से जीवन में नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और सकारातमक ऊर्जा का संचार होता है ।
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