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जानिए पितृ पक्ष के 12 प्रकार और उनके महत्त्व

जानिए पितृ पक्ष के 12 प्रकार और उनके महत्त्व
 
दुनिया में अलग अलग संप्रदायों के लोग किसी न किसी प्रकार से श्राद्ध की प्रक्रिया निभाते हैं. परंतु हिंदू धर्म में श्राद्ध की प्रक्रिया बहुत ज्यादा गहरी है. ऐसा माना जाता है कि मृत्यु के पश्चात मृत आत्माएं अपने परिवार और जगह के साथ लंबे समय तक बनी रहते हैं. जिसका आभास हमें अलग-अलग तरह से होता रहता  है. श्राद्ध करने से इन सूक्ष्म आत्माओं को मोह माया से मुक्ति मिलती है. इसके अलावा इन आत्माओं के प्रति हमारी श्रद्धा भी व्यक्त होती है. 

विश्वामित्र स्मृति और भविष्य पुराण में 12 प्रकार के श्राद्ध का विवरण दिया गया है.

   नित्य श्राद्ध यह श्राद्ध नित्य श्राद्ध कहलाता है क्योंकि यह श्राद्ध जल और अन्न द्वारा प्रतिदिन होता है। श्रद्धा भाव से माता-पिता एवं गुरुजनों के नियमित पूजन को नित्य श्राद्ध कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि अन्न के अभाव में जल से भी श्राद्ध किया जा सकता है।


  नैमित्तिक श्राद्ध

  मान्यतानुसार किसी एक व्यक्ति को निमित्त बनाकर जो श्राद्ध किया जाता है, उसे नैमित्तिक श्राद्ध कहते हैं।

   काम्य श्राद्ध

     जब किसी कामना की पूर्ति हेतु श्राद्ध कर्म किये जाते हैं तो इसे काम्य श्राद्ध कहा जाता है। मान्यता है कि इस श्राद्ध कर्म को करके मनुष्य की सभी मनोकामनाओं की पूर्ति  होती है।

    वृद्ध श्राद्ध

    विवाह, उत्सव आदि अवसरों पर वृद्धों के आशीर्वाद लेने हेतु किया जाने वाला श्राद्ध वृद्ध श्राद्ध कहलाता है। लोग विवाह के अवसर पर सर्वप्रथम पितरों का आह्वान करते हैं  जिससे उनके जीवन में आने वाले बाधाएं दूर हो जाएं।

 
  सपिंडी श्राद्ध

   सपिण्डन शब्द का अभिप्राय पिण्डों को मिलाना। पितर में ले जाने की प्रक्रिया ही सपिण्डन है। प्रेत पिण्ड का पितृ पिण्डों में सम्मेलन कराया जाता है। इसे ही सपिण्डन श्राद्ध कहते हैं।

 
    पार्वण श्राद्ध

    पार्वण श्राद्ध इसी पर्व से संबंधित होता है। किसी पर्व जैसे पितृ पक्ष, अमावस्या या पितरों को मृत्यु की तिथि आदि पर किया जाने वाला श्राद्ध पार्वण श्राद्ध कहलाता है।

    गोष्ठी श्राद्ध

   गोष्ठी शब्द का अर्थ समूह होता है। इसलिए अपने अर्थ को चरितार्थ करते हुए यह श्राद्ध सामूहिक रूप से किए जाते हैं।

    शुद्धयर्थ श्राद्ध

    शुद्धि के निमित्त जो श्राद्ध किए जाते हैं। उसे सिद्धयर्थ श्राद्ध कहते हैं। इस श्राद्ध में मुख्य रूप से ब्राह्मणों को भोजन कराना अच्छा होता है।

    कर्माग श्राद्ध

   कर्माग का अर्थ कर्म का अंग होता है, अर्थात किसी प्रधान कर्म के अंग के रूप में जो श्राद्ध सम्पन्न किए जाते हैं। उसे कर्म श्राद्ध कहते हैं।

    यात्रार्थ श्राद्ध

   यात्रा के उद्देश्य से किया जाने वाला श्राद्ध यात्रार्थ श्राद्ध कहलाता है। जैसे- तीर्थ में जाने के उद्देश्य से या देशांतर जाने के उद्देश्य से किया गया श्राद्ध।

    पुष्ट्यर्थ श्राद्ध

   पुष्टि के निमित्त जो श्राद्ध सम्पन्न हो, जैसे शारीरिक एवं आर्थिक उन्नति के लिए किया जाना वाला श्राद्ध पुष्ट्यर्थ श्राद्ध कहलाता है।

   दैविक श्राद्ध

   देवताओं को प्रसन्न करने के उद्देश्य से जो श्राद्ध किया जाता है उसे दैविक श्राद्ध कहा जाता है। इसे करने से अन्न-धन्न की कमी नहीं होती है और डिवॉन के साथ पितर भी  प्रसन्न होते हैं।
 
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