एक बार की बात है कि द्वापर युग में महिष्मती-पुरी राज्य पर महिजीता नाम का एक राजा राज्य पर शासन किया था। किंतु वह पुत्र धन से वंचित था। काफी लंबे समय तक प्रयत्न करने के बाद भी एक वारिस की प्राप्ति ना हो सकी। इस कारण राजा मिहिजता काफी चिंतित रहने लगे। एक दिन उसने अपने सभी बुद्धिमान सलाहकारों की एक सभा की मैंने अपने पूरे जीवनकाल में कोई पाप नहीं किया, ना ही मेरे खजाने में काला धन है, ना कभी देवताओं या ब्राह्मणों को सताया, बिना कारण कभी युदध नहीं किया और यदि किया तो राज्यों पर विजय प्राप्त की, मैंने सदैव सैन्य कला के नियमों और विनियमों का पूरी तटस्था के साथ पालन किया, मैंने अपने ही प्रियजनों को कानून तोड़ने पर सज़ा दी, मैंने अपने दुश्मन का पूरे ह्द्य से स्वागता यदि वह कोमल और धार्मिक प्रवृति का होने पर... किंतु फिर भी मैं पुत्र सुख से वंचित हूं इसका क्या कारण है... कृपया मुझे बताएं...
यह जानने पर राजा के सभी सलाहकारों ने आपस में इस गंभीर विषय पर चर्चा की और इस बात का हल निकालने हेतु ऋषियों के विभिन्न आश्रमों का दौरा करने की योजना बनाई। लेकिन कोई हल ना मिला। अंत में उन्हें एक लोमसा नामक ऋषि के दर्शन हुए जिनका तेज देखते ही बन रहा था। उनसे जब इसका कारण पूछा तो वे बोले मेरे जीवन का उद्देश्य दूसरों की मदद करना है तो आप अपनी शंका बतायें। ऐसा सुनने पर राजा के सलाहकार बोले की कि हमारे राजा, महजिता के पुत्र नहीं है और पुत्रहीन होने के कारण वह काफी दुखी है और हम इस समस्या का हल ढूंढना चाहते हैं। तोआप हमें बताएं कि वह पुत्र कैसे प्राप्त कर सकते हैष
ऱाजा के बारे में सुनने के बाद लोमसा ऋषि ने स्वंय को थोड़े समय के लिये गहरे ध्यान में लीन कर लिया और राजा के पिछले जीवन का गणित लगाया। और इसके बाद वह बोले कि आपका शासक अपने पिछले जीवन में एक बड़ी व्यापारी हुआ करता था और धन को एकत्रित करने के लिये उन्होनें काफी पाप कर्म किए। ज्येष्ठ के महीने के प्रकाश पखवाड़े के दौरान व्यापार हेतु यात्रा करने के दौरान एक बार उन्हें काफी प्यास लगी। उन्हें एक तालाब मिला और जैसे ही वह प्यास बुझाने हेतु पानी पीने वाले थे तभी एक गाय अपने नए-नवेले बछड़े के साथ आ गई क्योंकि वे दोनों भी गर्मी की तपिश से परेशान थे। लेकिन राजा ने स्वयं पानी पहले पिया उन गाय और बछड़े को अनदेखा करते हुये और यही कारण है कि वह पुत्र संपत्ति से अभी तक वंचित है। लेकिन अपने पिछले जीवन में उन्होंने काफी अच्छे कर्म किए जिसके कारण वह शासक बन सुख भोग रहे है।
इस पर राजा के सलाहकारों ने इसका उपाय पूछा तो लोमसा ऋषि बोले राजा को पुतराड़ा नामक एकादशी के दिन उपवास करना होगा । यह श्रावण महीने के प्रकाश पखवाड़े के दौरान पड़ती । राजा को इस दिन पूरे नियमों के साथ उपवास करना चाहिए ताकि इस व्रत द्वारा उन्हे एक अच्छे पुत्र का वरदान मिल सके।
श्रावण का महीना आने पर राजा ने सलाहकारों के द्वारा बताई गई लोमसा ऋषि की सलाह अनुसार व्रत किया और रानी गर्भवती हो गई और एक सबसे सुंदर पुत्र को जन्म दिया। इसी कारण इसे श्रावण महीने के प्रकाश पखवाड़े के दौरान आने वाली एकादशी को पुत्रदा के नाम से भी जाना जाता है।
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