क्या है वैकुंठ चतुर्दशी-
हिंदू धर्म में वैकुंठ चतुर्दशी के व्रत को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। दीपावली के पर्व के 14 दिन बाद वैकुंठ चतुर्दशी का व्रत किया जाता है। वैकुंठ चतुर्दशी के दिन अलग-अलग शिव मंदिर में भोलेनाथ की पूजा की जाती है। सभी भक्त अपनी मनोकामना को पूर्ण करने के लिए वैकुंठ चतुर्दशी का पर्व मनाते हैं। श्रीनगर में मौजूद कमलेश्वर मंदिर में भी बहुत ही धूमधाम से भगवान शिव और विष्णु की पूजा की जाती है। मान्यताओं के अनुसार श्रीनगर को देवताओं की नगरी माना जाता है। यहां पर मौजूद कमलेश्वर मंदिर में भगवान विष्णु ने कठिन तपस्या करके सुदर्शन चक्र को वरदान के रूप में प्राप्त किया था। इस मंदिर में भगवान श्री राम ने रावण का संघार करने के पश्चात ब्रह्म हत्या के पाप से छुटकारा पाने के लिए शिव जी की तपस्या की थी और ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त हुए थे।
वैकुंठ चतुर्दशी का महत्व-
हमारे धर्म शास्त्रों में वैकुंठ चतुर्दशी के पर्व का खास महत्व बनाया गया है। वैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु और भगवान की शिव की उपासना करने से मनुष्य द्वारा किए गए सभी पापों का अंत हो जाता है। धर्म पुराणों में बताया गया है कि जिस व्यक्ति की मृत्यु वैकुंठ चतुर्दशी के दिन होती है वह सीधा स्वर्ग लोक को प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन जो मनुष्य पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ भगवान शिव की पूजा करता है वह मृत्यु के पश्चात बैकुंठ लोक को प्राप्त होता है। मान्यताओं के अनुसार चातुर्मास के आरम्भ में देवशयनी एकादशी तिथि को भगवान विष्णु निंद्रा में लीन होने से पहले पूरी सृष्टि का कार्यभार भगवान शिव को सौंप देते हैं। जब तक भगवान् विष्णु निंद्रा में लीन रहते है तब तक पूरी सृष्टि का संचालन भोलेनाथ करते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु निंद्रा से जागते हैं तब वैकुंठ चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव दोबारा सृष्टि का कार्यभार भगवान विष्णु को सौंप देते हैं।
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