भद्रकाली जयंती के पीछे एक पौराणिक कथा मशहूर है. देवी भद्रकाली को माता पार्वती का रूप माना जाता है, जो अपने रूद्र रूप में भगवान शिव की सम्मानित पत्नी हैं और पुराणों और पौराणिक कथाओं में भी कहा गया है कि भद्रकाली माता पार्वती का स्वरुप है. वायु पुराण और महाभारत की कथाओं के अनुसार, जब दक्ष प्रजापति ने महान अश्वमेध यज्ञ के आयोजन के दौरान भगवान शिव का अपमान किया तो माता सती ने अग्निकुंड में कूद कर अपनी जान दे दी. तभी उन्होंने भद्रकाली का रूप धारण किया. भगवान् शिव इस आघात को सहन नहीं कर पाए और उन्होंने वीरभद्र का रूप धारण किया.
एक अन्य कथा के अनुसार डरिका नाम की राक्षसी ने भगवान ब्रह्मा की कठोर तपस्या करके उनसे अमरता का वरदान प्राप्त किया. ब्रम्हा जी के वरदान के अनुसार उसे किसी भी प्रकार से मारा नहीं जा सकता था. वरदान मिलने के पश्चात् डरिका ने लोगो को परेशान करना शुरू कर दिया. जब भगवान शिव को इस बारे में पता चला, तो उन्होंने देवी भद्रकाली को राक्षस को मारने और दुनिया में शांति और लाभ प्राप्त करने के लिए बनाया. भगवान् शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोला जिसमे से जिसमें से देवी भद्रकाली का प्राकट्य हुआ. देवी भद्रकाली ने डारिका का विनाश किया.