गणेश जी का वाहन मूषक कैसे बना
पौराणिक कथाओ के आधार पर- प्राचीन समय की बात है सुमेरू पर्वत पर सौभरि ऋषि का एक बहुत ही सुंदर आश्रम हुआ करता था और उनकी पत्नी का नाम मनोमयी था जो बहुत ही सुंदर और पतिव्रता थी। एक दिन ऋषि लकड़ी लेने के लिए जंगल में गये और इसी बीच उनकी पत्नी घर अन्य कामों में लग गयी। तभी एक दुष्ट कौंच नाम का गंधर्व वहाँ आया और वह सुंदर मनोमयी को देख उसकी ओर आकर्षित हो गया।
उस दुष्ट ने मनोमयी का हाथ पकड़ लिया और दुस्साहस किया। मनोमयी उनसे दया की भीख मांगने लगी परन्तु उसने अपना मन नही बदला। इसी बीच सौभरी वहां आ गये और उन्होने उस दुष्ट को श्राप दिया कि तु धरती पर चूहे के रुप में रहेगा। गंधर्व ने मुनि से अपने किये की माफी मांगी लेकिन उन्होनें कहा कि मेरा श्राप खाली नहीं जाता है और इसीलिये द्वापर युग में महर्षि पराशर के यहाँ गणपति देव गजमुख पुत्र रूप में प्रकट होंगे । हर युग में भगवान गणेश ने अलग-अलग अवतार लिये और गंधर्व उनके डिंक वाहन के रुप में उनके साथ रहा और सम्मानित भी हुआ।
कथा- 2
कथा इस प्रकार कहती है कि देवराज इंद्र के दरबार में एक क्रोंच नाम का गंधर्व था और वह सदैव अप्सराओं के साथ ही मग्न रहता था। एक बार मुनी वामदेव के ऊपर पैर रखने के कारण उसे श्राप मिला और वह चूहा बन गया। चूहे का रुपधारण करते ही वह सीधा पराशर ऋषि के आश्रम में जा गिरा। वहां जाते ही उसने चूहे के रुप बहुत ही उत्पात मचाया और पूरी वाटिका को उजाड़ दिया। इससे पराशर ऋषि बहुत दुखी हुएं और उन्होनें चूहे का आंतक समाप्त करने की सोची। वे गणेश जी के पास पहुंचे और उन्होनो तेज्वी पाश फेंका जिससे मूषक पाताल में पहुंच गया। उसका कंठ बंधा हुआ था और उसे घसीट कर बाहर निकाल दिया और उसे हाथी से समक्ष फेंक दिया। उस हाथी की पकड़ को वह चूहा सहन ना कर सका और बेहोश हो गया। होश में आते ही उस चूहे ने भगवान गणेश की आराधना शुरु की और अपने जान की भीक मांगी। भगवान की पूजा करने भगवान उससे बहुत ही खुश हुये और वरदान मांगने को कहा किंतु इससे वह घमंड में भर गया और बोला कि मुझे कोई वरदान नहीं चाहिये बल्कि यदि आप चाहें तो मुझसे ही वरदान मांग ले। भगवान ने कहा कि तू मेंरा वाहन बन जा और तब से मूषक उनकी सेवा में तत्पर है और उसका घंम़ड भी चूर हो चूका है।
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