चातुर्मास हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है। इसकी शुरुआत सावन से होती है और समापन कार्तिक माह में होता है। इन चार महीनों में कई बड़े पर्व आते हैं—सावन, श्राद्ध, शारदीय नवरात्रि, दिवाली आदि। इन्हीं में से शारदीय नवरात्रि विशेष महत्व रखती है, जिसे भक्त बड़ी श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाते हैं। माना जाता है कि इन दिनों में मां दुर्गा की कृपा से भक्तों की झोली सुख-समृद्धि और आशीर्वाद से भर जाती है।
शारदीय नवरात्रि शक्ति, प्रेम और सौम्यता की देवी मां दुर्गा को समर्पित है। नौ दिनों तक मां के नौ रूपों की विधिपूर्वक पूजा की जाती है। इस पर्व में हर आयु का व्यक्ति उत्साहपूर्वक भाग लेता है। पूजा-अर्चना के साथ-साथ जागरण, डांडिया, मेला और रामलीला जैसे कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। महिलाएं घर सजाती हैं, श्रृंगार करती हैं और मेहंदी रचाती हैं। पूरे नौ दिन व्रत रखने का भी विशेष महत्व है। नवरात्रि की शुरुआत घट या कलश स्थापना से होती है। इसके साथ जौ बोना भी आवश्यक माना जाता है, जो घर में सुख-समृद्धि और उन्नति का प्रतीक है। यह स्थापना आश्विन मास की प्रतिपदा तिथि पर की जाती है।
नवरात्रि में प्रातः और सायंकाल दोनों समय पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वयं को शुद्ध करें।
सबसे पहले भगवान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करें।
एक चौकी पर कुमकुम से स्वस्तिक बनाएं और उस पर लाल वस्त्र बिछाएं।
चौकी पर मां दुर्गा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
एक लोटे में जल भरकर उसमें आम के पत्ते रखें।
लोटे पर मौली बांधें और कुमकुम से स्वस्तिक अंकित करें।
भगवान गणेश का स्मरण करते हुए नारियल को जल भरे कलश पर रखें।
कलश के समक्ष हाथ जोड़कर प्रणाम करें।
एक मिट्टी के पात्र पर मौली बांधकर स्वस्तिक बनाएं और उसमें जौ बो दें।
मां दुर्गा के चरण धोकर उन्हें जल से अभिषेक करें।
मां को लाल या गुलाबी वस्त्र अर्पित करें।
सोलह श्रृंगार की वस्तुएं भेंट करें।
उन्हें हल्दी-कुमकुम से तिलक करें।
सुपारी, पंचमेवा, लौंग, इलायची, पताशे और मिठाई का भोग लगाएं।
नवरात्रि का सबसे महत्वपूर्ण विधान है अखंड ज्योति जलाना। यदि संभव न हो तो अपनी सामर्थ्य अनुसार दीप प्रज्वलित करें।
अखंड ज्योति के लिए मिट्टी, पीतल या चांदी का दिया लें, उसमें मौली की बत्ती रखकर घी भरें। बत्ती को घी में भिगोने के बाद एक छोर बाहर निकालकर जलाएं।
ज्योति प्रज्वलित करते समय मां दुर्गा का यह मंत्र अवश्य पढ़ें:
"सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते॥"
अर्थ: हे नारायणी, आप सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली, कल्याणदायिनी, शिवा, पुरुषार्थों को सिद्ध करने वाली, शरणागत की रक्षा करने वाली, त्रिनेत्री और गौरी हैं। हम आपके श्रीचरणों में प्रणाम करते हैं।
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