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नवरात्रि में राम चरित मानस का महत्व



नवरात्रि में श्रीरामचरितमानस का बहुत ही महत्व है. जब जिज्ञासा वश जनमेजय ने महात्मा वेदव्यास से प्रश्न किया कि हे भगवन श्रीराम ने नवरात्रि उपवास क्यों किया था. उन्हें 14 वर्षों का वनवास क्यों झेलना पड़ा. जब सीता जी का अपहरण हुआ तो उन्हें वापस प्राप्त करने के लिए श्री राम जी ने क्या किया. तब जनमेजय के प्रश्नों का उत्तर देते हुए व्यास जी ने कहा, जब माता सीता का अपहरण हुआ तो श्रीराम उनके विरह से बहुत ही व्याकुल हो गए थे. उन्होंने अपने भाई लक्ष्मण से कहा इतना ढूंढने पर भी सीते का कुछ पता न चल सका. 

यदि सीता नहीं मिली तो मेरी मृत्यु निश्चित है. बिना सीता के में अयोध्या नहीं जा पाऊंगा. माता सीता के अपहरण हो जाने पर भगवान राम दुखी होकर विलाप कर रहे थे. तब उनके भाई लक्ष्मण ने उन्हें आश्वासन देते हुए कहा कि भ्राता श्री आप धैर्य रखें, मैं रावण का वध करके माता को वापस ले आऊंगा. जो लोग सुख और दुख में धैर्य धारण करते हैं वही लोग बुद्धिमान होते हैं. कष्ट और वैभव में लीन हो जाना मंदबुद्धि लोगों का कार्य होता है. जीवन में संयोग और वियोग होते रहते हैं. इसलिए इन चीजों को शोक नहीं बनाना चाहिए. 

जैसे हमें विपरीत समय आने पर राज्य छोड़ना पड़ा उसी तरह अनुकूल समय आने पर राज्य प्राप्त हो जाएगा. इसलिए कोई भी अन्यथा विचार अपने मन में लगाएं. अपने मन को स्थिर करके माता सीता को ढूंढने का प्रयास करें. इस वन में बहुत से वानर हैं माता सीता को ढूंढने के लिए यह सब वानर चारों दिशाओं में जाएंगे. उनके प्रयास से माता शीघ्र मिल जाएंगी. जब रास्ते के विषय में जानकारी प्राप्त हो जाएगी तो मैं स्वयं जाकर माता सीता को वापस लाऊंगा अथवा सेना और शत्रुघ्न के साथ भरत भैया को बुलाकर हम तीनों एक साथ रावण पर आक्रमण करके उसे परास्त करेंगे. 

इसलिए आप शोक ना करें. हे राघव बहुत पुरानी बात है जब महाराज रघु एक ही रथ पर बैठे और उन्होंने चारों दिशाओं पर विजय प्राप्त कर ली थी. आप उन्हीं के कुलदीपक है. इसलिए आपका शोक करना शोभा नहीं देता है. मैं स्वयं ही सभी देवताओं और दानव को जीतने में सक्षम हूं और आप मेरे साथ हैं. तो उस अधर्मी रावण को मारने में कोई भी संदेह नहीं है. मैं माता सीता के पिता जनक जी को भी सहायता के लिए बुला लूंगा. हे रघुनंदन मेरे इस प्रयास से दुराचारी रावण अवश्य ही मारा जाएगा. 

सुख के बाद दुख और दुःख के बाद सुख जीवन में आते जाते रहते हैं. जीवन में कोई भी स्थिति हमेशा नहीं रहती है. रघुनंदन बहुत समय पहले की बात है इंद्र को भी इसी प्रकार का दुख झेलना पड़ा था. सभी देवताओं ने एक साथ मिलकर उनके स्थान पर देवराज के रूप में नहुष की नियुक्ति कर दी थी. अपने पद से वंचित होकर इंद्र कमल के कोष में बैठे रहे. कई सालों तक इंद्र का अज्ञातवास चलता रहा, पर बदलते समय के साथ इंद्र को फिर से देवराज का स्थान प्राप्त हुआ. 

ऋषि के श्राप की वजह से नहुष की आकृति अजगर की तरह हो गई और उसे पृथ्वी पर जाना पड़ा. जब नहुष ने इंद्राणी को देखा तो उसके मन में इंद्राणी को पानी की प्रबल इच्छा जगी. तब वो ऋषि मुनियों का अपमान करने लगा, इस बात से अगस्त्यमुनि क्रोधित हो गए और नहुष को सर्प योनि में जन्म लेने का श्राप दिया. इसलिए हे भ्राता श्री दुख की घड़ी आने पर शोक में डूब जाना उचित नहीं है. विद्वान पुरुष वही है जो इस स्थिति में मन को उद्म शील बनाकर सावधान रहें. 

आप सभी बातें जानते हैं. आप सब कुछ करने में समर्थ है फिर आप साधारण मनुष्य की तरह शोक क्यों कर रहे हैं. व्यास जी कहते हैं, लक्ष्मण जी के वचन सुनकर भगवान राम का विवेक फिर से जागृत हुआ और वह शोक त्याग कर निश्चिंत हो गए. राम और लक्ष्मण माता सीता को छुड़ाने का विचार कर रहे थे तभी वहां नारद मुनि प्रकट हुए. उस समय वह अपनी वीणा बजा रहे थे. नारद मुनि को देखकर श्रीराम ने उन्हें प्रणाम किया और उन्हें आसन पर विराजमान होने के लिए कहा. 

जब नारद मुनि ने श्रीराम से कुशलता पूछी और कहा कि है राघव आप साधारण मनुष्य की तरह इतना दुखी क्यों हो रहे हैं. रावण ने माता सीता का हरण किया है. यह बात मुझे पता है, मैं देवलोक गया था वही मुझे इस बात का पता चला. रावण ने अपने सर पर मंडराती हुई मृत्यु को आमंत्रण देने की वजह से यह कार्य किया है. जानकी पिछले जन्म में एक मुनि की पुत्री थी. उनका स्वाभाविक गुण तपस्या करना था. एक बार जानकी वन में तपस्या कर रही थी. तब रावण की दृष्टि उनके ऊपर पड़ी. रावण ने जानकी से प्रार्थना की कि तुम मेरी पत्नी बन जाओ, पर जानकी ने मना कर दिया. 

ऋषि कन्या के मना करने पर रावण को घोर अपमान महसूस हुआ और रावण ने उन्हें बलपूर्वक पकड़ लिया. ऐसा होने पर जानकी क्रोधित हो गयी और  रावण को श्राप दिया कि मैं तेरा संघार करने के लिए पृथ्वी पर एक स्त्री के रूप में प्रकट होंगी. मेरे अवतार में माता के गर्भ का कोई संबंध नहीं रहेगा. इस तरह कहकर जानकी ने अपने शरीर का त्याग कर दिया. यह वही सीता है जो लक्ष्मी के अंश से प्रकट हुई हैं. अपनी मृत्यु को आमंत्रण देने के लिए ही रावण ने उन का हरण किया है. 

सभी देवताओं ने रावण का संघार करने के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थना की थी. जिसके फलस्वरूप तुम्हारा जन्म रघुकुल में हुआ. इसलिए आप धैर्य रखें. हमेशा धर्म में तत्पर रहने वाली साध्वी सीता कभी भी किसी के बस में नहीं हो सकती हैं. उनका मन हमेशा तुम्हारे ध्यान में लीन है. उनके पीने के लिए स्वयं देवराज इंद्र एक पात्र में कामधेनु का दूध रखकर भेजते हैं और जानकी अमृत के समान मधुर दूध को पीती हैं. जिसे पीने के बाद सीता जी को भूख और प्यास नहीं लगती है,अब मैं आपको रावण का वध करने का उपाय बताता हूं. 

आश्विन महीने में आप श्रद्धा पूर्वक नवरात्रि का अनुष्ठान करें. नवरात्र में उपवास, भगवती की आराधना और विधिपूर्वक व्रत जाप और होम करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाएंगी. बहुत पहले ब्रह्मा विष्णु महेश और देवराज इंद्र भी नवरात्रि का अनुष्ठान कर चुके हैं. आप सुख पूर्वक यह पवित्र नवरात्रि का व्रत करें. किसी भी कठिन परिस्थिति में पड़ने पर पुरुषों को नवरात्रि व्रत जरूर करना चाहिए. विश्वमित्र, योग, वशिष्ठ और कश्यप ऋषि ने भी इस व्रत को किया था. इसीलिए रावण का वध करने के लिए इस व्रत का अनुष्ठान जरूर करें. 

वृत्रासुर राक्षस को मारने के लिए इंद्र ने और त्रिपुरासुर राक्षस का वध करने के लिए भगवान शिव ने भी नवरात्रि व्रत का अनुष्ठान किया था.  राक्षस मधु को मारने के लिए भगवान विष्णु ने सुमेर गिरी पर्वत पर यह व्रत किया था. इसलिए आप भी विधिपूर्वक इस व्रत को करें. तब भगवान राम ने पूछा कि हे नारद मुनि आप सभी कुछ जानते हैं इसलिए इस व्रत की विधि बताने की कृपा करें. यह कौन सी देवी है और उनका क्या प्रभाव है. यह कहां से अवतरित हुई है और इन्हें किस नाम से संबोधित किया जाता है. 

नारद मुनि ने कहा हे राम, यह देवी आद्या शक्ति हैं और सभी जगहों पर विराजमान रहती हैं. आद्या शक्ति की कृपा प्राप्त होने पर सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. इनकी आराधना करने से सभी दुख दूर हो जाते हैं. ब्रह्मा आदि सभी प्राणियों के निमित्त कारण आज्ञा शक्ति ही हैं. उनकी इच्छा के बिना कोई पत्ता भी नहीं हिल सकता है. मेरे पिता ब्रह्मा सृष्टि की रचना करते हैं, विष्णु सृष्टि का पालन करते हैं और शिव संघार करते हैं. इन तीनों में जो मंगलमय शक्ति भाषित होती है वही यह देवी है. 

त्रिलोक में जो कुछ विराजमान है उसकी उत्पत्ति में देवी के अतिरिक्त और कौन हो सकता है. जिस समय संसार में किसी की भी रचना नहीं की गयी थी तब भी उस समय इन आद्या शक्ति देवी का संपूर्ण विग्रह विराजमान था. आद्या शक्ति मां की कृपा से एक पुरुष प्रकट होता है और वह उसके साथ आनंद के साथ रहती हैं. यह बात युग के आरंभ की है. उस समय नवरात्रि निर्गुण कहलाती हैं .इसके बाद यह देवी सघन रूप से प्रकट होकर तीनों लोकों की रचना करती हैं. 

इनके द्वारा सबसे पहले ब्रह्मा आदि देवताओं का सृजन किया गया. इन देवी के विषय में जानकारी प्राप्त हो जाने पर प्राणी जन्म और मरण रूपी संसार बंधन से पूर्ण रूप से मुक्त हो जाता है. इन देवी के बारे में जानना बहुत आवश्यक है. वेद भी इनके बाद ही प्रकट हुए अर्थात आद्या शक्ति ने हीं वेदों की रचना की. ब्रह्मा जी ने गुण और कर्म के भेद से इन देवी के बहुत सारे नाम बताएं हैं. मैं कहां तक इन देवी का वर्णन करूं. भगवान राम ने कहा हे मुनिवर  कृपया इस व्रत की संक्षिप्त विधि बताने की कृपा करें. क्योंकि मैं भी  विधिपूर्वक देवी की उपासना के लिए नवरात्रि अनुष्ठान करना चाहता हूं. 

तब नारद मुनि ने कहा कि हे राम, समतल भूमि पर एक सिंहासन स्थापित कर के उसके ऊपर जगदंबा की मूर्ति स्थापित करो, और नवरात्रों के नौ दीन उपवास करते हुए श्रद्धा पूर्वक उनकी आराधना करो. परम प्रतापी भगवान राम ने नारद मुनि की बात सुनकर एक उत्तम सिंहासन का निर्माण करवाया और उसके ऊपर भगवती जगदंबा की मूर्ति को स्थापित किया. नौ दिनों तक उपवास करके भगवान राम ने विधि विधान के साथ देवी की पूजा अर्चना की. उस समय अश्विन मास आ गया था. उत्तम किष्किंधा पर्वत पर देवी की पूजा की गई. 

9 दिनों तक उपवास करते हुए भगवान राम इस व्रत को पूर्ण करने में मग्न रहे. विधिवत पूजन आदि से उन्होंने मां आदिशक्ति की पूजा की. माँ आद्या शक्ति प्रसन्न होकर भगवान राम के सामने प्रकट हुई और उन्होंने श्रीराम से कहा हे राम, मैं तुम्हारे तप से बहुत प्रसन्न हूं. जो भी मांगना चाहते हो मुझ से मांग लो. तुम श्री विष्णु के अंश से प्रकट हुए हो. मनु के पावन वंश में तुम्हारा जन्म हुआ है. रावण वध के लिए देवताओं के प्रार्थना करने पर भी तुमने अवतार लिया है. 

इसके पहले भी मत्स्य अवतार लेकर तुमने भयंकर राक्षसों का वध किया था. उस समय देवताओं का हित करने की इच्छा से तुमने देवों की भी रक्षा की थी. उसके पश्चात कच्छप रूप में अवतार लेकर मंडराचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण किया और समुद्र मंथन करवाया और देवताओं को अमृत द्वारा शक्ति संपन्न बनाया. हे राम तुम ही वराह रूप में भी प्रकट हो चुके हो. उस समय तुमने पृथ्वी को अपने दांत के अग्रभाग पर उठाया था. तुम्हारे हाथों हिरण्याक्ष नामक असुर का भी संघार हुआ. 

रघुकुल में प्रकट होने वाले श्री राम तुमने नरसिंह अवतार धारण करके प्रह्लाद के जीवन की रक्षा की और हिरण्यकश्यप नामक राक्षस को मारा. पुराने समय में वामन का अवतार लेकर तुमने बली के साथ छल किया. उस समय देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिए तुम इंद्र के छोटे भाई बनकर विराजमान थे. भगवान विष्णु के अंश से जमदग्नि के पुत्र होने का अवसर भी तुम्हें प्राप्त हुआ. जमदग्नि के पुत्र के अवतार में तुम ने क्षत्रियों को मार कर पृथ्वी ब्राह्मणों को दान कर दी थी .

उसी तरह इस समय तुमने राजा दशरथ के यहां पुत्र रूप में जन्म लिया है. सभी देवताओं की प्रार्थना से तुम्हारा अवतार हुआ है. रावण सभी लोगों को बहुत कष्ट दे रहा था. यह बलशाली  वानर भी देवताओं के ही अंश है. जो आगे जाकर तुम्हारे सहायक बनेंगे. इन सभी में मेरी शक्ति मौजूद है. तुम्हारा छोटा भाई लक्ष्मण शेषनाग का अवतार है. रावण के पुत्र मेघनाथ का वध तुम्हारा भाई लक्ष्मण करेगा. इस विषय में तुम्हें कोई भी संदेह नहीं करना चाहिए. अब तुम्हारा यह कर्तव्य है कि इस वसंत ऋतु में आने वाले नवरात्रि में असीम श्रद्धा के साथ मेरा उपवास करो. 

उसके बाद तुम रावण का वध करके सुख पूर्वक राज्य करोगे. 11000 वर्षों तक निरंतर तुम्हारा राज्य पृथ्वी पर स्थिर रहेगा. राज्य भोगने के बाद तुम बैकुंठ धाम प्राप्त करोगे. व्यास जी बताते हैं इस तरह कहकर देवी अंतर्ध्यान हो गई. भगवान राम बहुत ही प्रसन्न हुए. नवरात्रि का व्रत करके दशमी के दिन भगवान राम ने प्रस्थान किया. प्रस्थान करने से पहले भगवान राम ने विधिपूर्वक विजयदशमी की पूजा की. श्री राम की कीर्ति पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है.  अध्याशक्ति ने प्रकट होकर उन्हें प्रेरणा दी और उन्होंने सुग्रीव के साथ समुद्र तल में पुल बांधकर शत्रु रावण का वध किया. जो भी मनुष्य श्रद्धापूर्वक देवी के उत्तम चरित्र को श्रवण करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. 

नवरात्री का महत्व :-

नवरात्रि व्रत का अपना एक बहुत ही खास महत्व है. सबसे पहले भगवान श्रीराम ने शारदीय नवरात्र की पूजा आरंभ की थी. इसलिए यह एक राजस्व पूजा है. आद्या शक्ति की विशेष कृपा पाने के लिए रविवार के दिन खीर, सोमवार के दिन दूध, मंगलवार के दिन केला, बुधवार के दिन मक्खन, बृहस्पतिवार के दिन खांड, शुक्रवार के दिन चीनी और शनिवार के दिन गाय का घी से बना नैवेद्य अर्पित करना चाहिए और बाद में इन्हे ब्राह्मणों को दान कर देना चाहिए. इससे मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं.
 

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