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नवरात्रि का महत्व

नवरात्रि का महत्व

नवरात्रि का पर्व माँ भगवती की उपासना और आराधना का विशेष अवसर है। विद्वानों और साधकों ने इसकी महिमा को अनेक ग्रंथों में बताया है, किन्तु इसका सबसे प्रामाणिक आधार "दुर्गा सप्तशती” मानी जाती है। सात सौ श्लोकों में देवी दुर्गा की स्तुति और महिमा का वर्णन किया गया है। श्रद्धा, विश्वास और शुद्धता के साथ यदि दुर्गा सप्तशती का पाठ और माँ की पूजा की जाए, तो देवी प्रसन्न होकर साधक को मनोवांछित फल प्रदान करती हैं।

इस साधना में पवित्रता, नियम, संयम और ब्रह्मचर्य का विशेष महत्व है। कलश स्थापना राहुकाल में न करें। पूजा के समय घर और मंदिर को तोरण, पुष्प और मांगलिक पत्रों से सजाएँ, साथ ही स्वास्तिक, ओंकार और नवग्रह आदि की विधिपूर्वक स्थापना करें। देवी-देवताओं का आवाह्न उनके नाम मंत्रों द्वारा कर षोडशोपचार से पूजन करना अत्यंत फलदायी माना गया है।

नवरात्रि में व्रत और पूजा करने से सभी मनोरथ सिद्ध होते हैं। सौभाग्यवती स्त्रियों को समृद्धि, सुख और दीर्घायु की प्राप्ति होती है। विवाह योग्य युवक-युवतियों को योग्य जीवनसाथी मिलता है। रोगी या बाधाग्रस्त व्यक्ति भी माँ की कृपा से रोग और कष्टों से मुक्ति पा सकता है। वास्तव में भगवती की आराधना से कोई भी वस्तु दुर्लभ नहीं रहती।


नवरात्रि में पालन करने योग्य नियम

  • पूजा स्थल और घर को पूरी तरह शुद्ध करें।

  • संयम, पवित्रता और ब्रह्मचर्य का पालन करें।

  • धूम्रपान, मदिरा, मांसाहार, झूठ, क्रोध और लोभ से बचें।

  • राहुकाल और यमगंड काल में कलश स्थापना न करें।

  • पूजा में स्वच्छ और पवित्र वस्त्र पहनें।

  • काले वस्त्र और चमड़े की वस्तुओं का प्रयोग न करें।

  • पूजा में अखंड ज्योति शुद्ध घी से जलाएँ।

  • पूजन से पूर्व जौ बोने का विशेष महत्व है।

  • पाठ के समय बीच में रुकना उचित नहीं, यदि रुकना पड़े तो पुनः आरंभ करें।

  • पाठ स्पष्ट, मध्यम स्वर और एकाग्र चित्त से करें।

  • पाठ संख्या का दशांश हवन करने से फल शीघ्र मिलता है।

  • दूर्वा (हरी घास) माँ को अर्पित न करें।

  • उपवास पहले दिन, अंतिम दिन या पूरे नौ दिनों तक किया जा सकता है।

  • व्रत का पारण दशमी तिथि को करें।

  • नवकन्याओं का पूजन कर उन्हें भोजन और दक्षिणा अर्पित करना अति शुभ है।


पूजा की सामग्री

  • रोली, मौली, जनेऊ, सुपारी, पान के पत्ते

  • लौंग, इलायची, नारियल (कच्चा और सूखा)

  • अक्षत (चावल), चीनी, पंचमेवा, पंचपात्र

  • अगरबत्ती, धूप, गाय का घी या देसी घी

  • कलश (सोना, चाँदी, तांबा या मिट्टी का)

  • अखंड ज्योति हेतु दीया

  • श्रृंगार सामग्री, चुनरी, साड़ी

  • दूध, दही, शहद, केसर

  • सुगंधित व लाल पुष्प, अष्टगंध, कपूर

  • जौ, काले तिल, रूई, फल, पंचरत्न, पंचपल्लव

  • पूजा हेतु कपड़े (सफेद व लाल)

  • ब्राह्मणों के लिए पंचवस्त्र

  • शुद्ध मिट्टी या गंगाजल की रेत जौ बोने हेतु

  • शुद्ध धुले हुए बर्तन (थाली, कटोरी, गिलास आदि)

  • गंगाजल व तीर्थों का जल


इस प्रकार, श्रद्धा और नियमपूर्वक माँ दुर्गा की आराधना करने से भक्त अपने जीवन में सुख, समृद्धि और शांति प्राप्त करता है।


 

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