मार्कंडेय पुराण में बताया गया है कि एक बार मां दुर्गा ने सभी देवी देवताओं को बताया कि वह नंद और यशोदा के घर में उनकी पुत्री के रूप में अवतार लेने वाली हैं. जिससे वह राक्षसों का संहार कर सकें. अपने कहे अनुसार मां दुर्गा ने माता यशोदा और नंद देव के घर जन्म लिया. उसी दिन भगवान कृष्ण का जन्म भी हुआ था. क्योंकि इस बात की भविष्यवाणी पहले ही की जा चुकी थी की देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान के द्वारा कंस का वध होगा. इसलिए अपने प्राणों की रक्षा करने के लिए कंस ने अपनी बहन देवकी की सभी संतानों को मार दिया. परंतु देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान के रूप में भगवान विष्णु ने कृष्ण जी के रूप में अवतार लिया था. इसलिए भगवान की माया से वासुदेव ने अपने पुत्र को कंस से बचाकर नंद और यशोदा को सौंप दिया और यशोदा की पुत्री को अपने पुत्र के स्थान पर रख दिया. नंद और यशोदा की पुत्री जो मां दुर्गा का रूप थी, जब कंस ने उनकी हत्या करनी चाहि तो देवी दुर्गा फौरन अपने असली रूप में प्रकट हो गयी और साथ ही कंस को चेतावनी भी दी कि उसका वध करने वाला गोकुल में सुरक्षित पूर्वक रह रहा है. इतना कह के वह वहां से अंतर्ध्यान हो गई. मान्यताओं के अनुसार तभी से देवी विंध्याचल पर्वत पर विराजमान रहती हैं.