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माँ बगलामुखी की कथा

माँ बगलामुखी की कथा  

जब दक्ष प्रजापति ने अपने यज्ञ में सभी देवताओं और मंत्रियों को निमंत्रण दिया. परंतु नाराजगी के कारण उन्होंने सती को आमंत्रित नहीं किया. सती ने शिव से पिता के यज्ञ में जाने की आज्ञा मांगी. शिव ने बिना बुलाए वहां जाना अनुचित बताकर सती को जाने से रोका, पर सती ने शिव की बात ना मानकर उनसे कहा मैं अपने पिता के यज्ञ में आपके हिस्सेदारी निश्चित करने हेतु अवश्य जाऊंगी और अगर आपको पूर्ण रूप से सम्मान ना दिला सकी तो यज्ञ नष्ट कर दूंगी. ऐसा कहकर माता सती के नेत्र लाल हो गए. क्रोध की अग्नि में जलने की वजह से सती का रंग काला हो गया और उनका भयानक रूप देखकर शिव सती से डर कर भागने लगे. शिव नहीं चाहते थे कि बिना किसी वजह के सती अपना देह त्याग करें.  भागते भागते शिव को देवी ने पूर्व में काली कोण में तारा दक्षिण में षोडशी नृत्य कोण में भुवनेश्वरी पश्चिमी कोण में बगुलामुखी ऊपरी दिशा में मातंगी और कमला रूप में प्रकट होकर शिव का रास्ता रोकने लगी. सती के यह 10 रूप काली, तारा, षोडशी, छिन्नमस्ता, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, माता जी और कमला नाम से प्रसिद्ध हुए. अष्टमी महाविद्या बगलामुखी मानी जाती हैं. 
विष्णु पुराण में बताया गया है की एक बार सतयुग में पूरी सृष्टि का नाश कर देने की क्षमता रखने वाला भयंकर तूफान आया. तब सभी प्राणियों की रक्षा करने के लिए भगवान श्री विष्णु ने सौराष्ट्र देश में हरिद्रा सरोवर के समीप तपस्या करना आरंभ किया. जिससे मंगलवार चतुर्दशी की अर्धरात्रि के समय माता बगलामुखी का प्राकट्य हुआ. माता ने स्तंभन क्रिया के द्वारा पूरे विश्व को स्तंभित कर दिया. जिससे संसार की रक्षा हुई. कालांतर में इनका नाम बगुलामुखी पड़ा. बगलामुखी स्तंभन मिलन  और सम्मोहन की महादेवी मानी जाते हैं. 
 
 
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