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गंगा आरती|

गंगाआरती

जय गंगा मैया मांजय सुरसरी मैया।

भवबारिधिउद्धारिणी अतिहि सुदृढ़ नैया।।

हरीपद पदम प्रसूता विमलवारिधारा।

ब्रम्हदेवभागीरथी शुचि पुण्यगारा।।

शंकरजता विहारिणी हारिणी त्रय तापा।

सागरपुत्र गन तारिणी हारिणीसकल पापा।।

गंगा-गंगा जो जनउच्चारते मुखसों।

दूरदेश में स्थित भीतुरंत तरन सुखसों।।

मृतकी अस्थि तनिक तुव जलधारा पावै।

सो जन पावन होकरपरम धाम जावे।

तट-तटवासी तरुवर जल थल चरप्राणी।

पक्षी-पशु पतंग गतिपावे निर्वाणी।।

मातुदयामयी कीजै दीनन पददाया।

प्रभुपद पदम मिलकर हरीलीजै माया।।