भारतीयों के लिये गंगा केवल जलस्त्रोत नहीं बल्कि इससे बढ़कर है। गंगा दशहरा देवी गंगा को समर्पित है और यह दशमी तिथि या हिंदू कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ के महीने में चंद्रमा के उज्ज्वल आधे के दसवें दिन आता है। गंगा दशहरा देवी मां गंगा को सर्मपित है। गंगाजल को बहुत पवित्र माना जाता है और इसका उपयोग सभी हिंदू अनुष्ठानों के लिए करते हैं। गंगा नदी पौराणिक, ऐतिहासिक, धार्मिक और आर्थिक रूप से भारतीयों के लिए बहुत अधिक मूल्य रखती है।
गंगा दशहरा क्या है –
क्यूँ मनाया जाता है गंगा दशहरा... इसके पीछे भी एक बहुत ही रोचक कथा है। देवी गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए ऋषि भागीरथ को ध्यान लगाने में कई साल लग गए। यह वह दिन है जिस दिन गंगा नदी स्वर्ग से पृथ्वी पर ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को हस्त नक्षत्र में उतरी थी। इसलिए इस त्योहार को गंगा दशहरा के नाम से भी जाना जाता है जिसका अर्थ है गंगा का अवतरण।
गंगा दशहरा कब आता है -
क्या आप जानते है कि यह त्यौहार कैसे मनाया जाता है... और यह कब आता है.... आज हम आपको यही विस्तार से बताने जा रहे है। यह त्यौहार अमावस्या से शुरू होता और दस दिनों के लिए मनाया जाता है यानि शुक्ल दशमी पर समाप्त होता है। यह ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार मई या जून के महीने से मेल खाता है। गंगा जिसे स्वर्ग से उतरने वाली आकाशीय नदी के रूप में माना जाता है, भारत में सबसे पवित्र नदी है और गंगा में एक पवित्र डुबकी सभी प्रकार के पापों को मिटा सकती है। यह त्यौहार बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल राज्यों में बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है।
गंगा दशहरा का महत्व -
गंगा दशहरा के महत्व की गाथा अनंत है। ऐसा कहा जाता है कि गंगा में एक डुबकी का बाद, आपका मन स्पष्ट और शांत हो जाता है। और आजकल की तेज रफ्तार जीवन में यह आवशयक हो चुका है। अधिकांश तीर्थयात्री हमेशा इस भावना को घर वापस ले जाते हैं। हिंदुओं की पवित्र नदी गंगा भारतीय के लिए एक विशेष स्थान रखती है। गंगा को भारत में सबसे पवित्र और पवित्र नदी माना जाता है। इस नदी की पूजा इस विश्वास के साथ की जाती है कि देवी गंगा मानव जाति के सभी पापों को धो सकती हैं। दशहरा नाम दश से आता है जिसका अर्थ है दस और हारा जो हार को जीतता है।
इस प्रकार, यह माना जाता है इस दिन गंगा में स्नान, अन्न-वस्त्रादि का दान, जप-तप-उपासना और उपवास किया जाय तो 10 प्रकार के पाप (3 प्रकार के कायिक, चार प्रकार के वाचिक और तीन प्रकार के मानसिक) से मुक्ति मिलती हैं। गंगा दशहरा भारत के प्रमुख घाटों जैसे वाराणसी, इलाहाबाद, गढ़-मुक्तेश्वर, प्रयाग, हरिद्वार और ऋषिकेश में मनाया जाता है। सैकड़ों और हजारों तीर्थयात्रियों के बीच, पुजारी देवी गंगा की आरती करते हैं। सभी सुन सकते हैं तीर्थयात्रियों और पंडितों ने देवी गंगा की स्तुति और गायन किया है।
गंगा दशहरा की पूजा विधि – क्या है गंगा दशहरा की पूजा विधि आइये जानते हैं विस्तार से -
� गंगा में स्नान - गंगा दशहरा के दिन गंगा में स्नान करना चाहिये।
� मंत्र का जाप - स्नान करते वक्त ऊँ नमः शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै नमः जाप करना चाहिये।
� हवन करें - इसके बाद हवन में भाग लें हवन में भाग लेते वक्त ऊँ नमः शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै स्वाहा का जाप जरूर करें।
� पांच मिठाई और फूल चढ़ायें - तत्पश्चात ऊँ नमो भगवति ऐं ह्रीं श्रीं (वाक्-काम-मायामयि) हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा करते हुए मंत्र से पांच मिठाई और फूल चढ़ा करके गंगा को भूतल पर लाने वाले भगीरथ का और जहाँ से वे आयी हैं, उस हिमालय का नाम- मंत्र से पूजन करें।
� 10 फल, 10 दीपक और 10 सेर तिल- इसके बाद फिर 10 फल, 10 दीपक और 10 सेर तिल को लेते हुये इनका गंगायै नमःका उच्चरण करने हूए दान करें। साथ ही पिण्ड जल में घी मिले हुए सत्तू और गुड़ डालें।
� सामर्थ्य अनुसार पूजन - अगर आप सामर्थ्य हो तो कच्छप, मत्स्य और मण्डूकादि भी पूजन करके जल में डाल सकते है।
� ब्राह्मण को दान - इसके अतिरिक्त10 सेर तिल, 10 सेर जौ, 10 सेर गेहूँ 10 ब्राह्मण को दान करें। इतना करने से सब प्रकार के पाप समूल नष्ट हो जाते हैं और दुर्लभ-सम्पत्ति प्राप्त होती है।
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