क्यों प्रिय है भगवान शिव को महेश नवमी|
• माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति भगवान शिव के वरदान से हुई है। माहेश्वरी समाज का उत्पत्ति दिवस जेष्ठ शुक्ल नवमी तिथि के दिन मनाया जाता है। इसे महेश नवमी कहते हैं।
• इस दिन भगवान शिव अपने महेश स्वरूप में पृथ्वी से भी ऊपर कमल पुष्प पर बेलपत्र, त्रिपुंड, त्रिशूल, डमरू के साथ लिंग रूप में विराजमान होते हैं।
• भगवान शिव के इस बोधचिन्ह के हर प्रतीक का अपना एक अलग महत्व है।
पृथ्वी-
पृथ्वी का आकार गोल है। परंतु भगवान शिव उससे भी ऊपर है। अर्थात जिसे पृथ्वी की परिधि से भी बांधा नहीं जा सकता वह एकमात्र लिंग भगवान महेश पूरी सृष्टि में सबसे ऊपर है।
त्रिपुण्ड-
भगवान शिव अपने माथे पर त्रिपुंड तिलक लगाते हैं। त्रिपुंड तिलक की इन तीन रेखाओं में पूरा ब्रह्मांड समाया हुआ है। एक खड़ी रेखा अर्थात भगवान शिव का तीसरा नेत्र…।। जो पापियों का नाश करने के लिए खुलता है। त्रिपुंड तिलक हमेशा भस्म से ही लगाया जाता है। जो भगवान शिव की वैराग्य वृद्धि के साथ त्याग की तरफ भी संकेत करता है और हमें यह शिक्षा देता है कि हमें भी अपने जीवन में त्याग वैराग्य की भावना को समाहित कर देश का कल्याण करना चाहिए।
त्रिशूल-
त्रिशूल विभिन्न बुराइयों को नाश करने वाला और दुष्टों को नष्ट कर के चारों तरफ शांति स्थापित करता है।
डमरू-
भगवान शिव का डमरू हमें स्वर और संगीत की शिक्षा देता है और जनमानस को जागृत कर समाज और देश की परेशानियों को दूर करने के साथ-साथ परिवर्तन लाने के लिए भी कहता है।
कमल -
भगवान शिव के हाथों में जो कमल विराजमान है। उसमें 9 पंखुड़ियां है, जो मां दुर्गा के नौ स्वरूपों का प्रतीक है। कमल का पुष्प एक ऐसा पुष्प है जो भगवान विष्णु की नाभि से प्रकट हुआ है और ब्रह्मा जी की रचना की है। महालक्ष्मी भी कमल पर ही विराजमान रहती हैं और अपने दोनों हाथों में कमल के फूल को धारण करती हैं। ज्ञान की देवी सरस्वती भी सफेद रंग के कमल पर विराजमान रहती हैं। इसके साथ ही कमल कीचड़ में खिलता है, पानी में रहता है पर फिर भी वह किसी में समाहित नहीं है। इसीलिए हमारे समाज का भी यही भाव होना चाहिए।
ॐ -
कमल के फूल की बीच वाली पंखुड़ी पर ॐ का चिन्ह अंकित है। ॐ अखंड ब्रह्मांड का प्रतीक और परमात्मा के विभिन्न स्वरूपों का समावेश लिए हुए हैं। इसलिए ॐ को ईश्वरी श्रद्धा का प्रतीक माना जाता है।
बिल्वपत्र -
त्रिदलीय बिल्वपत्र स्वास्थ्य का प्रतीक है। भगवान शिव को बिल्वपत्र बहुत प्रिय है। बिना बिल्वपत्र के भगवान शिव की पूजा अधूरी मानी जाती है।
सेवा -
हमारे ऊपर समाज का बहुत बड़ा ऋण रहता है। इसलिए कभी भी यह नहीं सोचना चाहिए कि समाज ने हमें क्या दिया है बल्कि हम समाज को क्या दे रहे हैं यह सोचना चाहिए। हर मनुष्य के अंदर यही सेवा भावना होनी चाहिए। जैसी माता के मन में पुत्र के प्रति होती है।
त्याग -
त्याग की भावना के बारे में हिंदू धर्म के साथ-साथ संसार के सभी धर्म शास्त्रों में बताया गया है हमारे पूर्वज सादगी पूर्ण जीवन जीकर अपनी पूरी पूंजी समाज के कल्याण में लगाकर स्वयं को खुशकिस्मत मानते थे।
सदाचार -
मानव जीवन में सदाचार का स्थान बहुत ही ऊंचा है। जिस मनुष्य में, परिवार में, समाज में चरित्र हीनता अनैतिकता, गुंडागर्दी, भ्रष्टाचार व्याप्त हो वह समाज कभी भी उन्नति नहीं कर सकता है। और जब समाज उन्नति नहीं करता है तो उस देश की प्रगति रुक जाती है। इसलिए सभी मनुष्यों का सदाचारी होना बहुत जरूरी है।