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महेश नवमी कथा|

 

 

महेश नवमी कथा| 

 

महेशनवमी माहेश्वरी समाज का प्रमुख पर्वहै। ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथिको यह पर्व मनायाजाता है। माहेश्वरी समाजकी उत्पति भगवान शिव के वरदान सेइसी दिन हुई। महेशनवमी के दिन देवाधिदेवशिव व जगतजननी मांपार्वती की आराधना कीजाती है।

एक खडगलसेन राजा थे। प्रजाराजा से प्रसन्न थी।राजा व प्रजा धर्मके कार्यों में संलग्न थे,पर राजा को कोईसंतान नहीं होने केकारण राजा दु:खीरहते थे। राजा नेपुत्र प्राप्ति की इच्छा सेकामेष्टि यज्ञ करवाया। ऋषियों-मुनियों ने राजा कोवीर व पराक्रमी पुत्रहोने का आशीर्वाद दिया,लेकिन साथ में यहभी कहा 20 वर्ष तक उसेउत्तर दिशा में जानेसे रोकना। नौवें माह प्रभु कृपासे पुत्र उत्पन्न हुआ। राजा नेधूमधाम से नामकरण संस्कारकरवाया और उस पुत्रका नाम सुजान कंवररखा। वह वीर, तेजस्वीव समस्त विद्याओं में शीघ्र हीनिपुण हो गया।

एक दिन एक जैनमुनि उस गांव मेंआए। उनके धर्मोपदेश सेकुंवर सुजान बहुत प्रभावित हुए।उन्होंने जैन धर्म कीदीक्षा ग्रहण कर ली औरप्रवास के माध्यम सेजैन धर्म का प्रचार-प्रसार करने लगे। धीरे-धीरे लोगों कीजैन धर्म में आस्थाबढ़ने लगी। स्थान-स्थानपर जैन मंदिरों कानिर्माण होने लगा।

एक दिन राजकुमार शिकारखेलने वन में गएऔर अचानक ही राजकुमार उत्तरदिशा की ओर जानेलगे। सैनिकों के मना करनेपर भी वे नहींमाने। उत्तर दिशा में सूर्यकुंड के पास ऋषियज्ञ कर रहे थे।वेद ध्वनि से वातावरण गुंजितहो रहा था। यहदेख राजकुमार क्रोधित हुए और बोले- 'मुझे अंधरे में रखकर उत्तरदिशा में नहीं आनेदिया' और उन्होंने सभीसैनिकों को भेजकर यज्ञमें विघ्न उत्पन्न किया। इस कारण ऋषियोंने क्रोधित होकर उनको श्रापदिया और वे सबपत्थरवत हो गए।

राजाने यह सुनते हीप्राण त्याग दिए। उनकी रानियांसती हो गईं। राजकुमारसुजान की पत्नी चन्द्रावतीसभी सैनिकों की पत्नियों कोलेकर ऋषियों के पास गईंऔर क्षमा-याचना करने लगीं। ऋषियोंने कहा कि हमाराश्राप विफल नहीं होसकता, पर भगवान भोलेनाथव मां पार्वती कीआराधना करो।

सभीने सच्चे मन से भगवानकी प्रार्थना की और भगवानमहेश व मां पार्वतीने अखंड सौभाग्यवती वपुत्रवती होने का आशीर्वाददिया। चन्द्रावती ने सारा वृत्तांतबताया और सबने मिलकर72 सैनिकों को जीवित करनेकी प्रार्थना की। महेश भगवानपत्नियों की पूजा सेप्रसन्न हुए और सबकोजीवनदान दिया।

भगवानशंकर की आज्ञा सेही इस समाज केपूर्वजों ने क्षत्रिय कर्मछोड़कर वैश्य धर्म को अपनाया।इसलिए आज भी 'माहेश्वरीसमाज' के नाम सेइसे जाना जाता है।समस्त माहेश्वरी समाज इस दिनश्रद्धा व भक्ति सेभगवान शिव व मांपार्वती की पूजा-अर्चनाकरते हैं।