देव शयनी एकादशी का महत्व-
देव शयनी एकादशी को सौभाग्यदायिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. पद्म पुराण में बताया गया है कि देव शयनी एकादशी का व्रत करने से मनुष्य द्वारा किए गए जाने अनजाने पाप भी नष्ट हो जाते हैं. देवशयनी एकादशी के दिन श्रद्धा पूर्वक विधि विधान से पूजा करने से मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है. ब्रह्मवैवर्त पुराण में बताया गया है कि देव शयनी का एकादश व्रत करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. शास्त्रों के अनुसार देवशयनी एकादशी के दिन से चातुर्मास से प्रारंभ हो जाता है और इन 4 महीनों में किसी भी प्रकार के शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं. भागवत पुराण में बताया गया है कि देवशयनी एकादशी के दिन शंखासुर राक्षस का वध किया गया था, उसी समय से भगवान विष्णु 4 महीने तक क्षीरसागर में निद्रा में लीन रहते हैं.
देव शयनी एकादशी पूजन विधि-
देव शयनी एकादशी के दिन सुबह सूर्योदय से पूर्व उठकर घर की साफ सफाई करने के पश्चात स्नान करें. इस दिन किसी पवित्र नदी में स्नान करना शुभ माना गया है. अगर आपके घर के आसपास कोई पवित्र नदी नहीं है तो अपने नहाने के पानी में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर स्नान करें. स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करके अपने पुरे घर में गंगाजल छिड़के. अब अपने घर के पूजा घर में या किसी शुद्ध स्थान पर एक लकड़ी की चौकी रखें. अब इसके ऊपर पीले रंग का वस्त्र बिछाकर भगवान विष्णु की सोने, चांदी, तांबे या मिट्टी की मूर्ति की स्थापना करें. अब षोडशोपचार द्वारा भगवान विष्णु की श्रद्धा पूर्वक पूजा करें. भगवान विष्णु को पीले रंग के फूल अर्पित करें. पूजा करने के पश्चात देवशयनी एकादशी की व्रत कथा सुने और आरती करने के पश्चात प्रसाद वितरित करें.