इस व्रत को निर्जला इसीलिये कहा
जाता है क्योंकि यह व्रत बिना जल पिये किया जात है। इस दिन भक्त जल ग्रहण नहीं करत
है।
इस शुभ दिन भगवान विष्णु की पूजा
पूरी श्रद्धा के साथ की जाती है और फिर अगले दिन द्वादशी के दिन पूजा-पाठ और ब्राह्मण
को भोजन कराने के बाद स्वंय भोजन करने की प्रथा है।
इस व्रत के महात्मय का वर्णन
18 पुराणों में से एक स्कद पुराण में एकादशी महात्म्य में भी की गई है।
इसमें सालभर की सभी प्रकार की
एकादशियों के संबंध में जानकारियां दी गई है। इस अध्याय में भगवान श्री कृष्ण जी ने
युधिष्ठिर को एकादशियों के महत्व की जानकारी दी है इसी संदर्भ में पांडव पुत्र भीम
से भी एक कथा जुड़ी हुई है।
सुबह जल्दी उठकर व्रत का संकल्प
लेना चाहिये।
इस दिन सुबह भगवान विष्णु की
पूजा मंत्रों के जप के साथ करनी चाहिये।
इस दिन ब्राह्मण को खाना खिलाना
चाहिये और उसके बाद भोजन करना चाहिये।
इस दिन तुलसी पत्र को भी तोड़ना
नहीं चाहिये। ईश्वर की पूजा करने हेतु तुलसी का एक पत्ता पहले ही तोड़ लिया जाना चाहिये
या फिर पहले से ही गिरे हुये पत्तों को धोकर उपयोग करना चाहिये।
इस दिन चावल को ग्रहण नहीं करना
चाहिये।
जिन घरों में अशांति होती वहा
ईश्वर का वास नहीं होता है।