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||श्री हरी आरती||

 

||श्री हरी आरती|| 

ॐ जय जगदीशहरे, स्वामी! जयजगदीश हरे।

भक्तजनों के संकटक्षण में दूर करे॥

जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।

सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटेतन का॥ ॐ जय...॥

मात-पिता तुममेरे, शरण गहूंकिसकी।

तुम बिनु औरन दूजा, आसकरूं जिसकी॥ ॐजय...॥

तुम पूरन परमात्मा,तुम अंतरयामी॥

पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबकेस्वामी॥ ॐ जय...॥

तुम करुणा केसागर तुम पालनकर्ता।

मैं मूरख खलकामी, कृपा करोभर्ता॥ ॐ जय...॥

तुम हो एकअगोचर, सबके प्राणपति।

किस विधि मिलूंदयामय! तुमको मैंकुमति॥ ॐ जय...॥

दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुरमेरे।

अपने हाथ उठाओ,द्वार पड़ा तेरे॥ॐ जय...॥

विषय विकार मिटाओ,पाप हरो देवा।

श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ,संतन की सेवा॥ॐ जय...॥

तन-मन-धनऔर संपत्ति, सबकुछ है तेरा।

तेरा तुझको अर्पणक्या लागे मेरा॥ॐ जय...॥

जगदीश्वरजी की आरतीजो कोई नर गावे।

कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछितफल पावे॥ ॐ जय...॥