श्रीकृष्ण जन्मोत्सव व्रत बढ़ाए सुख-समृद्धि
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाएं, दुख दारिद्र भगाएं
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इस धरती पर जब-जब किसी आसुरी प्रवृत्ति की शक्ति ने कू्ररता व अत्याचार की सीमाएं पार की तब-तब धर्म रक्षा व युग निर्माण के लिए धरा में सज्जनों का कष्ट मिटाने हेतु भक्त वत्सल भगवान ने अवतारों को धारण किया। वह खुद उन भक्तों के घर बालक रूप में जन्म ले उन्हें वात्सल्य के आनन्द से परिपूर्ण कर देते हैं। सामाजिक बंधनों व मयार्दाओं का पालन करते हुए बालपन की मधुर किलकारियों से उनके तन, मन, हृदय को सींचते हैं।
मथुरा के राजा उग्रसेन के पुत्र कंस ने मानवता की सारी हदें पार कर पापाचारों को बढ़ाया जिससे धरा व्याकुल हो उठी और भक्त व सज्नन दुःखी होकर त्राहि-त्राहि करने लगे भक्त व सज्जनों की प्रार्थना से श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में मां देवकी के गर्भ से जन्म लिया। भादों मास की अष्टमी की भयानक काली रात व वर्षा और प्राकृति से लेकर भौतिक सभी अति विपरीत परिस्थितियां जिन्हें सफलता व धैर्य पूर्वक पार करते हुए श्रीकृष्ण ने मानव जीवन को कर्म योग, धैर्य, साहस, व प्रेम के अटूट बंधन से जोड़ा। अत्याचार की अंधियारी से भौचक व खामोेस धरा में श्रीकृष्ण ने सोलह कलाओं से युक्त हो इस संसार में न्याय, सत्य, धर्म, और कर्म योग का संदेष दिया। मथुरा, वृन्दावन, नंदगांव, गोकुल, व्रजगांव में पे्रम अठखेलियां करते हुए चहु ओर ख़ुशी की सरिता बहा दी, गोपियों का प्रेम, अर्जुन का कर्मयोग, उद्धव का अभिमान जिसे गोपियों के स्वच्छ व प्रगाढ़ प्रेम ने समाप्त कर दिया। अर्थात् श्रीकृष्ण जन्माष्टमी प्रतिवर्ष इस संसार में मानव जीवन को प्रेमपूर्वक अपने कर्म मे अटल रहने व मानव प्रेम का संदेश देती है। कृष्ण मुरली की मधुर तान, मोहनी छवि, संावला रंग, बड़ी ही सहजता से अत्याचार के ध्रूम-केतू को हटा देता है। भक्त पे्रम का आकर्षण उन्हें नर तन धारण करने पर विवश कर देता। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति अपने भक्ति प्रेम द्वारा श्रीकृष्ण को आकर्षित करने तथा उन्हें लुभाने हेतु श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर लगा रहता है।
पूजा विधि व समय: - नित्य कर्मो से निवृत्त होकर षोड़षोपचार विधि से भगवान श्रीकृष्ण पूजा करनी चाहिए, जो सामान्यतः रात्रि 12 बजे से शुरू हो जाती है, षोड़षोपचार विधि में- भगवान का आवाहन, आसन, पाद्य, अघ्र्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, उपवीत, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, आरती, प्रदक्षिणा और पुष्पांजलि देते हुए पूजा सम्पन्न की जाती है।
पूजा की सामग्रीः - दूध, दही, घी, रूई, माचिस, धूप, दीप, कपूर, पान, सुपारी, लौंग, इलाइची, शुद्ध जल, गंगा जल, शहद, रोली, मौली, सुगन्धित चंदन, इत्र, कुमकुम, जनेऊ, सुगन्धित पुष्प, अक्षत, दूर्वा, मलयागिरि चंदन, पंच फल, पंच मेवा, पंचामृत, मीठा, व अन्य फलाहारी नैवेद्य, वस्त्राभूषण, द्रव्य आदि विधि से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पूजा अर्चना प्रेम भावना व श्रद्धा पूर्वक करें तथा जीवन को सफल व समृद्ध बनाएं तथा जीवन में छाएं दुःख दारिद्रता के तिमिर को भगाएं। विविध प्रकार की साज सज्जा से युक्त पालने में आसीन बाल गोपाल को स्नेह का झूला झुलाना तथा उनके दर्षन करना अति शुभ व फलदायी माना जाता है।
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