दिवाली का त्यौहार रौशनी और खुशियों का होता है. ऐसा माना जाता है की श्रीराम अपने चौदह वर्ष का वनवास काटकर इसी दिन अयोध्या लौटे थे. श्रीराम के लौटने की ख़ुशी में अयोध्या के लोगो ने दिए जलाकर उनका स्वागत किया था. तभी से इस दिन को दीपावली के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है. इस दिन सभी लोग अपने अपने घरों में दिए जलाकर माँ लक्ष्मी को अपने घर में आने का निमंत्रण देते हैं. दिवाली से दो दिन पहले धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता है. हमारे धर्म पुराणों में लिखा है की जो भी व्यक्ति धनतेरस से तीन दिन तक लगातार दीपदान करता है उसके घर में हमेशा सुख और समृद्धि बनी रहती है. धनतेरस के अगले दिन नरक चौदस का त्यौहार मनाते हैं. इस दिन नरक के देवता यमराज की पूजा करने का नियम है. नरक चौदस के दिन शरीर पर सुगंधित द्रव्य, उबटन, अपामार्ग लगाकर स्नान किया जाता है. ऐसा करने से मनुष्य के मन में यम और नर्क का भय नहीं रहता है. इस दिन तिल युक्त जल से स्नान करने का नियम है. तिल युक्त जल से स्नान करने के बाद यम के नाम से तीन अंजली जल अर्पण किया जाता है. धनतेरस के दिन शाम के समय घर, मंदिर, देव वृक्ष और नदी के किनारे दीप जलाए जाते हैं. हमारे धर्म पुराणों में बताया गया है कि धनतेरस से लेकर 3 दिन तक लगातार दीप जलाने से यमराज प्रसन्न हो जाते हैं और अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है. इसके अलावा धनतेरस से 3 दिन तक दीप जलाने से मृत्यु के बाद यम की प्रताड़ना का भय भी नहीं रहता है. जो व्यक्ति दीपदान से यमराज की पूजा करता है उसे कभी भी नर्क का भय नहीं सताता है.
नरक चौदस को रूप चौदस के नाम से भी मनाया जाता है. लक्ष्मी पूजा के 1 दिन पहले लक्ष्मी का त्यौहार आने की अभिलाषा में लोग सुगंधित द्रव्य युक्त जल से नहाकर नए वस्त्र पहनते हैं और खुद का रूप निखार कर मां लक्ष्मी की पूजा विधि विधान से करते हैं. धनतेरस का त्यौहार कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को मनाया जाता है. इस दिन शाम के समय किसी पात्र में मिट्टी के दीए में तिल का तेल भरकर नई रुई की बत्ती जलाई जाती है और फूल, गंध, पुष्प अक्षत आदि से यम की पूजा की जाती है.
कुबेर को पृथ्वी की समस्त धन, दौलत, संपत्ति, संपदा, वैभव और ऐश्वर्या का स्वामी माना जाता है.. धनतेरस के दिन शाम के समय धन के देवता कुबेर को 13 दीप जलाकर समर्पित करना चाहिए. अगर आप मनचाही स्मृद्धि पाना चाहते हैं तो यह आपके लिए रामबाण उपाय साबित हो सकता है. कुबेर को भूगर्भ का स्वामी भी माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि कुबेर की पूजा करने से मनुष्य के अंदर की ऊर्जा जागृत होती है और धन के आने का रास्ता भी खुलता है. धनतेरस के दिन धूप, दीप, चंदन और नैवेद्य से कुबेर की पूजा करे
धनतेरस के अगले दिन रूप चौदस का पर्व मनाया जाता है. इस दिन को छोटी दिवाली भी कहते हैं. हमारे धर्म पुराणों में बताया गया है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन भौमासुर राक्षस का वध करके उस की कैद में बंद 16100 कन्याओं को मुक्त करवाया था. भौमासुर की नारकीय यात्राओं से मुक्ति मिलने के कारण इस दिन को नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है. नरक चतुर्दशी के दिन सूरज निकलने से पहले शरीर पर तिल और उबटन लगाकर नहाए. ऐसा माना जाता है कि रूप चतुर्दशी के दिन तेल में मां लक्ष्मी निवास करती हैं और जल में गंगा का वास होता है. जो भी व्यक्ति रूप चतुर्दशी के दिन सूरज निकलने से पहले स्नान करता है वह कभी भी यमलोक नहीं जाता है.
शाम के समय यमराज के नाम से चौमुखा दीप जलाकर दीपदान करें. दीपदान करने के बाद खुले आसमान के नीचे मशाल या तेल का दीपक जलाकर अपने पूर्वजों से प्रार्थना करें कि वह हमारे इस दीपदान से प्रसन्न होकर इस दीप के प्रकाश से स्वर्ग लोक में पहुंच जाएं. पूर्वजों के नाम से दीपदान करने के बाद अपने घर में दिए जलाएं.