दीपावली की रात को क्यों किए जाते हैं तांत्रिक प्रयोग
हमारे शास्त्रों में दीपावली की रात को कालरात्रि माना गया है. इस रात को महानिशा भी कहा जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार कालरात्रि बहुत ही अशुभ होती है. ऐसे में सभी लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि ऐसे शुभ रात्रि में लक्ष्मी पूजन जैसा शुभ कार्य कैसे किया जाता है. आज हम आपको कालरात्रि का अर्थ और उसका महत्व बताने जा रहे हैं.
कालरात्रि का अर्थ:-
कालरात्रि को महा निशा भी कहा जाता है. जो महा और निशा दो शब्दों से मिलकर बनता है. एक शब्द महा का अर्थ होता है बड़ा और निशा का अर्थ होता है रात्रि, वह रात्रि जो हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होती है या महत्वपूर्ण कार्यों को सिद्ध करने वाली होती है. इसीलिए दीपावली की रात को कालरात्रि कहा जाता है. शक्ति संभव दंड के काली खंड में बहुत प्रकार की रात्रियों का विस्तृत विवरण दिया गया है. इसमें दीपावली की रात को कालरात्रि कहा गया है. तंत्र शास्त्र में काल रात्रि को एक शक्ति रूप माना जाता है. सभी तंत्र ग्रंथों में बताया गया है की कालरात्रि शक्ति की पूजा से सुख सौभाग्य धनधान्य वैभव की प्राप्ति होती है.
कालरात्रि का महत्व:-
कालरात्रि को एक तरफ जहां शत्रु विनाशक माना जाता है वहीं शास्त्रों में इसे सुख सौभाग्य देने वाली रात्रि भी माना जाता है.
मंत्र में इनको गणेश्वरी कहा जाता है. जो रिद्धि सिद्धि प्रदान करने वाली हैं. अमावस्या की रात चंद्रमा उदय नहीं होता है. इसलिए रात अंधकारमय होती है.
अमावस्या को अंधकार का स्वरूप माना जाता है. क्योंकि सूर्य के निकट चंद्रमा पहुंच जाता है. अर्थात चलते-चलते चंद्रमा उस राशि के निकट वाली या उसी राशि में चला जाता है जिस राशि में सूर्य मौजूद रहता है. इसी दिन गणेश लक्ष्मी कुबेर तथा काली की पूजा की जाती है.
इस रात तंत्र मंत्र टोने टोटके आदि जैसे तांत्रिक कार्यों को सिद्ध किया जाता है. महानिशा का आगमन अर्धरात्रि के बाद होता है.
महा निशा में तांत्रिक योगी उपासक साधक अपनी अपनी विशेष पूजा उपासना साधना और सिद्धि क्रियाएं करते हैं.
पुराने समय में से हमारे धर्म पुराणों में शक्ति की पूजा करने के लिए साल के अलग-अलग दिनों की मान्यता बताई गई है. शास्त्रों और पुराणों में कार्तिक मास की अमावस्या को कालरात्रि कहा गया है. अमावस्या के 2 दिन पहले से और 2 दिन बाद तक अर्थात 5 दिनों तक का समय पुण्य काल होता है. इसलिए कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस, चतुर्दशी को नरक चौदस, अमावस्या को दीपावली लक्ष्मी पूजन तथा शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को अन्नकूट और द्वितीय को भैया दूज का त्यौहार मनाया जाता है. यह समय शरद ऋतु काल का बहुत ही खुशनुमा समय रहता है.
कालरात्रि से जुड़ी खास बातें:-
दीपावली की रात को कालरात्रि कहते हैं, लेकिन पूरी रात कालरात्रि नहीं कहलाती है. पूरी रात को दो भागों में बांटा गया है.
रात का पहला पहर अर्थात अर्धरात्रि तक लक्ष्मी गणेश पंच देवों की उपासना की जाती है. इसलिए इसे सिद्धिदात्री कहा जाता है.
अर्धरात्रि के बाद से लेकर सूर्योदय से दो घड़ी पहले तक का समय रात 12:00 बजे से लेकर सुबह 5:00 बजे तक का समय महानिशा कहलाता है.
जो साधक महानिशा में साधना करना चाहता है उसे रात के 11:00 तक साधना की पूरी तैयारी कर लेनी चाहिए. महानिशा में तंत्र साधना करने का विशेष महत्व होता है.
इस समय मां लक्ष्मी की आराधना करने से सुख संपत्ति और धन वैभव की प्राप्ति होती है. यह समय मां लक्ष्मी की पूजा और धन प्राप्ति की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है.
दिवाली की रात को 12 बजे के बाद जो मुहूर्त का समय होता है उसे महानिशा कहते हैं. उसमें मां लक्ष्मी की पूजा करने से धन की प्राप्ति होती है.
दीपावली के दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों तुला राशि में मौजूद होते हैं. तुला का स्वामी शुक्र होता है. शुक्र को धन प्रदान करने वाला ग्रह माना गया है.
जब सूर्य और चंद्र राशि में एक साथ होते हैं तब लक्ष्मी पूजन करने से मनुष्य को सुख संपत्ति और धन की प्राप्ति होती है.
तंत्र साहित्य के अनुसार दीपावली की रात को महानिशा के नाम से संबोधित किया जाता है और यह माना जाता है कि महानिशा, होली की पूर्णिमा, नवरात्रि, सूर्य एवं चंद्र ग्रहण के काल में की गई यंत्र मंत्र तंत्र साधना बहुत जल्दी फल देती है.
दूसरे समय जिन यंत्र मंत्र तंत्र और साधना ओं की सिद्धि के लिए लाखों संख्या में हवन जाप और पूजन करना पड़ता है वही इन विशेष अवसरों पर यह सिद्धियां कम प्रयास और कम जाप करने से ही प्राप्त हो जाती हैं.
इन सभी अवसरों में महानिशा को सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना गया है. क्योंकि कालरात्रि की रात कुछ ऐसे महत्वपूर्ण योग बनते हैं जिससे आद्या शक्ति की कृपा प्राप्त होती है.
इस रात की गई सभी साधनाएं सिद्ध हो जाती हैं. काल रात्रि में अपना नित्य पूजन करने के बाद शाबर मंत्र, ईस्ट मंत्र आदि जो पहले से ही सिद्ध कर चुके हैं उन्हें फिर से जागृत करें.
उसके बाद दूसरी नई साधना विधि विधान से सिद्ध करें. महानिशा और यंत्र तंत्र साधना महानिशा में यंत्र साधना करने के लिए जरूरी है.
अगर आप खुद भोजपत्र आदि पर यंत्र का निर्माण करते हैं तो उसकी पूजन सामग्री आदि की व्यवस्था पहले से ही कर लें. इस समय निर्माण किए गए यंत्र दूसरे दिनों की अपेक्षा अधिक सिद्धि दायक होते हैं और उसकी वार वार प्राण प्रतिष्ठान नहीं की जाती है.
मात्र दीपावली की रात में पूजन यंत्र से संबंधित मंत्र का जाप किया जाता है. अगर सोने, चांदी, तांबे, धातु के यंत्र की पूजा करनी है तो उसे पहले से ही किसी योग्य विद्वान से प्राप्त कर लें.
अगर भोजपत्र पर यंत्र लिखना है तो सबसे पहले अखंडित भोजपत्र लेकर चकोर काट लें और उस पर अष्टगंध की स्याही से अनार या चमेली की कलम से लिखे.
अलग अलग यंत्र में अलग-अलग प्रकार स्याही और अलग-अलग प्रकार की कलम का इस्तेमाल किया जाता है. उन्हें उसी के अनुसार निर्मित करें.
इन यंत्रों के जो मंत्र रहते हैं वही इन यंत्रों की ऊर्जा शक्ति होते हैं. ऐसे भोजपत्र पर बने यंत्रों को स्वर्ण, चांदी, तांबे, अष्ट धातु के ताबीज में भरकर महा रात्रि की सुबह पहनना चाहिए.
कालरात्रि ऐसी रात्रि है जो साल में सिर्फ एक बार आती है. इसलिए इस रात को सोते हुए, जुआ खेलते हुए, राग रंग या मस्ती में नहीं गुजारना चाहिए.
इस साल महानिशा में सोए बिना अपनी मनोकामना को पूरा करने के लिए पूरी रात साधना करें. ऐसा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होंगी.
अगर आप अधिक कठिन पूजा पद्धति नहीं अपनाना चाहते हैं तो उसे श्री सूक्त का पाठ, लक्ष्मी सूक्त का पाठ, लक्ष्मी का कोई मंत्र अपना इष्ट मंत्र आदि अधिक से अधिक संख्या में पाठ करें और मंत्रों का जाप करें.
इस रात्रि में की गई पूजा उपासना आपको सिद्धि प्रदान करेगी. अगर इस रात का कोई व्यक्ति उपयोग नहीं करता है और दरिद्रता के लिए दुर्भाग्य के लिए किस्मत का रोना रोता है तो उसे साक्षात कुबेर भी धन प्रदान नहीं कर सकते हैं.
Disclaimer: The information presented on www.premastrologer.com regarding Festivals, Kathas, Kawach, Aarti, Chalisa, Mantras and more has been gathered through internet sources for general purposes only. We do not assert any ownership rights over them and we do not vouch any responsibility for the accuracy of internet-sourced timelines and data, including names, spellings, and contents or obligations, if any.