Indian Festivals

दिवाली के दिन रंगोली का महत्व

दिवाली का त्यौहार रोशनी का त्योहार माना जाता है. मान्यताओं के अनुसार इस दिन मां लक्ष्मी घर में प्रवेश करती हैं. लक्ष्मी को वैभव का प्रतीक माना जाता है. सभी लोग अपने घर में सुख और समृद्धि रहना चाहते हैं. इसीलिए सदियों से दीपावली के दिन आंगन में रंगोली सजाई जाती है. समय के साथ रंगोली बनाने की परंपरा में बदलती जा रही है. आजकल घर के बाहर मार्केट में रंगोली के स्टीकर भी आसानी से मिलने लगे हैं. कई जगहों पर लोग रंगोली बनाने के लिए अलग-अलग डिजाइन के साधनों का इस्तेमाल करते हैं. जिसमें चावल का आटा भरकर सिर्फ जमीन में चलाना होता है और जमीन पर सुंदर आकृतियां उभर जाती हैं. यह स्त्रियों द्वारा अपनी रचनात्मक दिखाने का एक उचित अवसर भी होता है. 

रंगोली से जुड़ी खास बातें:- 
  • महिलाएं दिवाली पर अपने घर आँगन में रंगोली बनाकर पूरे वातावरण को खुशनुमा और रंगबिरंगा बना देती है.
  • आजकल की आधुनिक और पाश्चात्य सभ्यता के होने के बावजूद भी महिलाओं के बीच रंगोली के लिए बहुत आकर्षण नजर आता है. 
  • रंगोली लोक जीवन का एक बहुत ही अभिन्न अंग होती है. देश के अलग-अलग हिस्सों में रंगोली बनाने का अलग-अलग महत्व है. 
  • दक्षिण भारत में स्त्रियां सुबह उठकर अपने घर के दरवाजों को अलग-अलग रंगो से सजाते हैं. उत्तर भारत में रंगोली को अल्पना या चौक पूर्ण  भी कहते हैं. 
  • कोई भी त्यौहार बिना रंगोली के अधूरा सा लगता है. रंगोली से जुड़ी एक प्राकृतिक कथा भी मशहूर है. 

कथा:- 

एक बार भोलेनाथ शिव शंकर हिमालय की ओर जा रहे थे. जाते वक़्त उन्होंने  पार्वती से कहा की जब मैं वापस आऊं तो तुम्हारा घर आंगन जगमगाता हुआ होना चाहिए, नहीं तो मैं फिर से हिमालय पर चला जाऊंगा. ऐसा कहकर शिवजी चले गए पर पार्वती जी चिंता में पड़ गई. उन्होंने घर को घर को साफ सुथरा किया और गाय के गोबर से लीपा. जैसे ही उन्होंने घर और आँगन को लीपा कि शंकर जी वापस आ गए. 

पार्वती जी हड़बड़ा कर बाहर की तरफ दौड़ी और आँगन गीला होने के कारण उनका पांव आंगन में फिसल गया. शिवजी ने देखा तो वह आश्चर्य में पड़ गए. उन्होंने देखा की पैरों की कलात्मक छाप, महावर के लाल रंग का अंकन और उस पर गिरे हुए फूल एक बहुत ही सुंदर दृश्य पैदा कर रहे थे. इस रंगीन आकृति को देखकर शिवजी ने प्रसन्न होकर वरदान दिया की आज से जिस घर में यह रंगोली बनाई जाएगी वहां पर मैं स्वयं निवास करूंगा और जो भी व्यक्ति अपने घर में रंगोली बनाएगा उसके घर में हमेशा धनधान्य भरा रहेगा. तभी से रंगोली बनाने की प्रथा चल रही है. 

रंगोली का महत्व:- 
  • रंगोली बनाना बहुत ही पुरानी प्रथा है. पुरातत्व खोजों के दौरान जो सामग्री मिली है उसमें बहुत ही अद्भुत रेखांकन देखने को मिले हैं. विशेषज्ञों के अनुसार रेखांकन जो अक्सर अल्पना में पाए जाते हैं. यह सभी शिव के प्रतीक हैं. 
  • किसी भी शुभ अवसर पर घर में रंगोली ज़रूर बनायीं जाती है. जिसे अलग-अलग जगहों में अल्पना, रंगोली चौकपूर्ण, मांडना,कोल्लम, कोड़रा  आदि भी कहा जाता है. 
  • विशेष मौकों पर बनाए जाने वाले यह मांगलिक प्रतीक कल्याण और कामना के प्रतीक होते हैं. सभी घरों में महिलाएं रंगोली बनाती हैं. 
  • पुराने समय में गाय के गोबर से धरती को लीपा जाता था और फिर सीख, सलाई, रुई, ब्रश और उंगली के इस्तेमाल से अल्पना रंगोली लोग चित्रकारी की जाती थी और अवसर के अनुसार लक्ष्मी, कमल का फूल, स्वास्तिक, चिड़िया, हाथी, शेर, मोर पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ बनाए जाते थे. 
  • यही नहीं गांव में तो इस अवसर पर लोक गीत भी गाए जाते हैं. जिन्हें सुनकर लोग मुग्ध हो जाते हैं. रंगोली में जो अलग-अलग आकृतियां बनाई जाती हैं उनके प्रति भक्ति भावना का प्रभाव रहता है. जिसे अलग नजरों से परखा जा सकता है. 
  • शिव और शक्ति के समन्वय की कल्पना को रंगोली में आड़ी तिरछी रेखाओं और अर्थ में बनाने की परंपरा पुराने समय से चली आ रही है. 
  • उत्तर भारत में ग्रामीण इलाकों में जहां अभी तक पाश्चात्य प्रभाव नहीं पड़ा है वहां आज भी चौक पूर्ण  की प्रथा चल रही है. जो अल्पना ,रंगोली आदि का ही एक रूप है. 
  • अनुष्ठान किए जाने वाले को पहले गाय के गोबर से जमीन को लीपना  होता है. उसके बाद सूप में गेहूं, चावल का आटा लेकर आकर्षक आकृति का चौक बनाया जाता है. जिसमें उंगलियों के इस्तेमाल से आड़ी तिरछी रेखाओं से मांगलिक प्रतीक बनाए जाते हैं. 
  • रंगोली बनाने की शुरुआत बरसात समाप्त होने के बाद शुरू होती है. जैसे ही आसमान साफ होता है लोग अपने घरों में मौजूद कीड़े मकोड़ों को नष्ट करने के लिए घर की साफ सफाई करने लगते हैं. 
  • घर की सफाई करने के बाद घर आंगन में रंगोली बनाई जाती है. रोली को कुमकुम, फल ,चावल, लकड़ी का बुरादा आदि चीजों का इस्तेमाल करके बनाते हैं. 
  • भगवान के पूजन के समय सबसे पहले चौक पूरने की प्रथा भी रंगोली बनाने का ही एक रूप है. 
  • स्त्रियां स्वास्तिक के चिन्ह को बनाना शुभ मानती हैं. स्वास्तिक को चार भुजाओं का प्रतीक माना जाता है. यह चार रेखाएं आश्रम, वर्ग, वित्त एवं पुरुषार्थ का प्रतीक होते हैं. 
  • स्वास्तिक के अलावा फूल ,मछली, पक्षी, हाथी, शंख, तारा आदि का अंकन करके भी रंगोली बनाई जाती है. जिसके पीछे सुख समृद्धि की कामना दिखाई देती है इसी भावना के साथ बनाए जाते हैं.  
  • रंगोली लोक संस्कृति की एक बहुत ही अनमोल धरोहर है. त्योहारों में बड़े उत्साह के साथ घर के मुख्य द्वार पर रंगोली बनाते हैं. 
 
दीपावली पर रंगोली का महत्व :-
  • दीपावली पर रंगोली के रंग माहौल को और खुशनुमा बना देते हैं. रामचरितमानस के 1 दोहे में इसका उल्लेख इस तरह लिखा गया है. 
चौके चारु सुमित्रा पूरी मणिमय विविध भांति अति रूरी  
  • इसका अर्थ यह है भगवान् की स्थापना करके सर्वकल्याण की कामना की जाती है.
आज के इस प्रदूषित माहौल से ग्रामीण जीवन की भावनाओं को झुलसने से बचाने के लिए और  भी ज्यादा सतर्कता और सावधानी की जरूरत है. लेकिन यह बहुत ही खुशी की बात है कि आधुनिक और पढ़ी-लिखी महिलाएं भी रंगोली के प्रति सजग और आकर्षित दिखाई देती है.
 
 
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