1. नवरात्री के दिनों में दोनों वक़्त की पूजा उपासना बहुत ही महत्वपूर्ण है|
2. सूर्य उदय के पूर्व उठें और स्नान आदि कर खुद को शुद्ध कर लें|
3. सबसे पहले भगवान सूर्य को जल अर्पित करें|
4. एक चौकी लें या मंदिर में ही कुमकुम से स्वस्तिक बनाएं|
5. उसपे लाल कपडा बिछाएं और माँ दुर्गा का चित्र व् मूर्ति स्थापित करें|
6. एक लोटे में जल भर लें और उसपे आम के पत्ते रखें|
7. लोटे के मुखपर कलावा बांधे और कुमकुम से उसपे स्वस्तिक बनाएं|
8. अब माँ दुर्गा का नाम लेते हुए भगवान् गणेश जी को याद करते हुए नारियल को जल के लोटे पर स्थापित करें|
9. कलश के आगे हाथ जोड़ कर सर झुका कर प्रणाम करें|
10. अब एक मिटटी का पात्र लें उसपे भी कलावा बांधे पर रोली से स्वस्तिक बनाएं|
11. उस मिटटी के पात्र में मिटटी के बीच जौ ज्वारे बो दें|
12. अब माँ के चरण धोएं और उन्हें जल का छींटा भी दें|
13. उन्हें नए वस्त्र अर्पण करें| लाल या गुलाबी रंग के हो|
14. अब उन्हें सोलाह श्रृंगार की वस्तुएं अर्पण करें|
15. उन्हें हल्दी कुमकुम का तिलक करें|
16. माँ को सुपारी,पंचमेवा, इलाइची, लौंग, पताशे आदि फल मिठाईयों का भोग लगाएं|
17. अब जो सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, पूरे नवरात्री की- नवरात्री में अखंड जोत जगाई जाती है जिसका फल बहुत ही शुभ होता है| परन्तु आप अपनी क्षमता व् सामर्थ्य के अनुसार जोत जगा सकतें हैं|
18. अखंड जोत जगाने की विधि-
- एक मिट्टी या पीतल या चांदी का दिया लें|
- उसमें कलावे की बनी बत्ती लगाएं| और उसमें घी पिघला कर डालें|
- कुछ देर बत्ती को पूरा घी में डूबे रहने दे और फिर बत्ती बाहर निकाल उसे प्रज्वलित करें|
- जोत जगाते समय माँ दुर्गा का यह मन्त्र पढ़े:- "सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते॥
"अर्थात:हे नारायणी! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगल मयी हो।कल्याण दायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थो को (धर्म, अर्थ,काम, मोक्ष को) सिद्ध करने वाली हो। शरणागत वत्सला,तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो। हे नारायणी, तुम्हें नमस्कार है।(यह मन्त्र अगर आप पढ़ पाएंतो बहुत उत्तम होगा अन्यथा आप इसे फ़ोन में टीवी में या किसी भी तरह से चला सकतें है)
19. अब माँ देवी सप्तशती का पाठ करें और आरती कर अपनी सुबह की पूजा समाप्त करें|
20. शाम के समय प्रदोष काल के वक़्त माँ दुर्गा चालीसा पढ़ें व् उनकी आरती करें और उन्हें फलाहार भोजन जैसे कुट्टू की पकोड़ी, सामक की पूरी आलू सब्ज़ी आदि का भोग लगाएं और खुद ग्रेहेन करें|
चैत्र नवरात्री
13 अप्रैल पहला नवरात्र - घट स्थापना व् माँ शैलपुत्री पूजा
14 अप्रैल दूसरा नवरात्र - माँ ब्रह्मचारिणी पूजा
15 अप्रैल तीसरा नवरात्र - माँ चंद्रघंटा पूजा
16 अप्रैल चौथा नवरात्र - माँ कुष्मांडा पूजा
17 अप्रैल पांचवा नवरात्र - माँ स्कंदमाता पूजा
18 अप्रैल छठा नवरात्र - माँ कात्यायनी पूजा
19 अप्रैल सातवां नवरात्र - माँ कालरात्रि पूजा
20 अप्रैल आठवां नवरात्र - माँ महागौरी पूजा
21 अप्रैल नौवां नवरात्र - माँ सिद्धिदात्री पूजा
प्रथम माता शैलपुत्री -
या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्रीरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यैनमस्तस्यैनमस्तस्यैनमो नम:॥
शैल का अर्थ होता है पर्वत. पर्वतों के राजा हिमालय के घर में पुत्री के रूप में यह जन्मी थीं, इसीलिए इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है. नवरात्र के इस प्रथम दिन की उपासना में साधक अपने मन को ‘मूलाधार’चक्र में स्थित करते हैं, शैलपुत्री का पूजन करने से ‘मूलाधार चक्र’जागृत होता है और यहीं से योग साधना आरंभ होती है जिससे अनेक प्रकार की शक्तियां प्राप्त होती हैं.
रूप: माँ शैलपुत्री दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल का पुष्प लिए अपने वाहन वृषभ पर विराजमान होतीं हैं.
श्रृंगार:माँ शैलपुत्री को चमकदार श्वेत या हलके गुलाबी वस्त्र अर्पण करें|
पूजा: माँ के आगे गाये के शुद्ध घी का दीपक लगाएं| धुप अगरबत्ती भी लगाएं|
माँ शैलपुत्री को सफ़ेद फूलों की माला अर्पित करें|
माँ को चन्दन व् चन्दन का इत्र भी अर्पित करें|
कथा: अपने पूर्वजन्म में ये प्रजापति दक्ष के घर की कन्या के रूप में उत्पन्न हुईं थीं। तब इनका नाम ‘सती’था और इनका विवाह भगवान शंकरजी से हुआ था। एक बार प्रजापति दक्ष ने बहुत बड़ा यज्ञ किया जिसमें उन्होंने सारे देवताओं को अपना- अपना यज्ञ- भाग प्राप्त करने के लिए आमंत्रित किया। किन्तु दक्ष ने शंकरजी को इस यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया। सती ने जब सुना कि उनके पिता एक अत्यन्त विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं तो वहां जाने के लिए उनका मन व्याकुल हो उठा। अपनी यह इच्छा उन्होंने शंकरजी को बताई।
सारी बातों पर विचार करने के बाद उन्होंने कहा – प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे रुष्ट हैं। अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को आमंत्रित किया है। उनके यज्ञ- भाग भी उन्हें समर्पित किए हैं, किन्तु जान- बूझकर हमें नहीं बुलाया है। ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहां जाना किसी भी प्रकार श्रेयस्कर नहीं होगा।
शंकरजी के इस उपदेश से सती को कोई बोध नहीं हुआ और पिता का यज्ञ देखने, माता- बहनों से मिलने की इनकी व्यग्रता किसी भी प्रकार कम न हुई। उनका प्रबल आग्रह देखकर अंतत: शंकरजी ने उन्हें वहां जाने की अनुमति दे ही दी।
सती ने पिता के घर पहुंचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बात नहीं कर रहा है। सारे लोग मुँह फेरे हुए हैं। केवल सती की माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया।
बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव भरे हुए थे। परिजनों के इस व्यवहार से सती के मन को बहुत क्लेश पहुँचा। सती ने जब देखा कि वहाँ चतुर्दिक भगवान शंकर जी के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है और दक्ष ने भी उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन कहे।
यह सब देखकर सती का ब्रदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से संतप्त हो उठा और उन्होंने सोचा भगवान शंकर जी की बात न मान, यहां आकर मैने बहुत बड़ी भूल की है। सती अपने पति भगवान शंकर जी का अपमान न सह सकीं और उन्होंने उस रूप को तत्क्षण वहीं योगग्नि द्वारा भस्म कर दिया। वज्रपात के समान इस दु:खद समाचार को सुनकर शंकरजी ने अतिक्रुद्ध होकर अपने गणों को भेजकर दक्ष के यज्ञ का पूर्णतया: विध्वंस करा दिया।
सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वे "शैलपुत्री”नाम से विख्यात हुईं।
पार्वती, हैमवती भी उन्हीं के नाम हैं। उपनिषद की कथा के अनुसार इन्हीं ने हैमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व- भंजन किया था। "शैलपुत्री”देवी का विवाह भी शंकरजी से ही हुआ। पूर्वजन्म की ही भांति वे इस बार भी शिवजी की ही अर्धांगिनी बनीं। नवदुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियाँ अनंत हैं।
उपासना मंत्र : वन्दे वांछितलाभाय चन्दार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
भोग: माँ शैलपुत्री चन्द्रमा से सम्बन्ध रखती है| इन्हे सफ़ेद खाद्य पदार्थ जैसे खीर, रसगुल्ले, पताशे आदि का भोग लगाना चाहिए| स्वस्थ व् लम्बी आयु के लिए माँ शैलपुत्री को गाये के घी का भोग लगाएं या गायें के घी से बनी मिठाईयों का भोग लगाएं|
आरती:
शैलपुत्री मां बैल असवार।
करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी।
तेरी महिमा किसी ने ना जानी।
पार्वती तू उमा कहलावे।
जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू।
दया करे धनवान करे तू।
सोमवार को शिव संग प्यारी।
आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो।
सगरे दुख तकलीफ मिला दो।
घी का सुंदर दीप जला के।
गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं।
प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।
जय गिरिराज किशोरी अंबे।
शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो।
भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।
माँ शैलपुत्री का कवच: यह आप पढ़ भी सकते है या इसे सफ़ेद कागज़ पर लाल रंग से लिखकर अपने घर के मुख्य द्वार पर अंदर की तरफ लगा सकतें हैं|
ओमकार: मेंशिर: पातुमूलाधार निवासिनी।
हींकार: पातु ललाटे बीजरूपा महेश्वरी॥
श्रींकारपातुवदने लावाण्या महेश्वरी ।
हुंकार पातु हदयं तारिणी शक्ति स्वघृत।
फट्कार पात सर्वागे सर्व सिद्धि फलप्रदा॥